Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 321
________________ ३०८ प्रज्ञापना सूत्र पुढवीकाइय आउ तेउ वाउ वणस्सइ बेइंदिय तेइंदिय चउरिदिएसु अत्थेगइए उववज्जेजा, अत्थेगइए णो उववज्जेजा। भावार्थ - पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक एवं वनस्पतिकायिकों में तथा बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रियों में कोई तेजस्कायिक उत्पन्न होता है और कोई उत्पन्न नहीं होता है। जे णं भंते! उववजेजा से णं केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए? गोयमा! णो इणद्वे समटे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जो तेजस्कायिक इनमें उत्पन्न होता है, क्या वह केवलि प्रज्ञप्त धर्म श्रवण को प्राप्त कर सकता है? उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। तेउक्काइए णं भंते! तेउक्काइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएसु उववज्जेजा? गोयमा! अत्थेगइए उववजेजा, अत्थेगइए णो उववज्जेजा। .. भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! तेजस्कायिक जीव, तेजस्कायिकों में से निकल कर क्या सीधा पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न होता है? उत्तर - हे गौतम! कोई उत्पन्न होता है और कोई उत्पन्न नहीं होता है। , जेणं भंते! उववजेजा से णं केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेजा सवणयाए? गोयमा! अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए णो लभेजा। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जो तेजस्कायिक, पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में उत्पन्न होता है, क्या वह केवलि प्रज्ञप्त धर्म श्रवण को प्राप्त कर सकता है ? उत्तर - हे गौतम! उनमें से कोई धर्म श्रवण प्राप्त करता है और कोई प्राप्त नहीं करता है। जेणं भंते! केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेजा सवणयाए से णं केवलं बोहिं बुझेजा? गोयमा! णो इणढे समढे। . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जो तेजस्कायिक केवलि प्रज्ञप्त धर्म श्रवण प्राप्त करता है, क्या वह केवलिप्रज्ञप्त बोधि (धर्म) को समझ पाता है ? उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। मणुस्स-वाणमंतर जोइसिय वेमाणिएसु पुच्छा? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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