Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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इक्कीसवां अवगाहना-संस्थान पद - संस्थान द्वार
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एवं खहयराण वि णव सुत्ताणि, णवरं सव्वत्थ सम्मुच्छिमा हुंड संठाणसंठिया भाणियव्वा, इयरे छसु वि।
भावार्थ - इसी प्रकार खेचरों के औदारिक शरीर संस्थानों के भी नौ सूत्र पूर्वोक्त प्रकार से समझने चाहिए। विशेषता यह है कि सम्मूछिम तिर्यंच पंचेन्द्रियों के औदारिक शरीर सर्वत्र हुण्डक संस्थान वाले कहने चाहिए। शेष सामान्य, गर्भज आदि के शरीर तो छहों संस्थानों वाले होते हैं।
विवेचन - जिस प्रकार सामान्य तिर्यंच पंचेन्द्रियों के विषय में नव सूत्र (आलापक) कहे हैं उसी क्रम से जलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय, सामान्य स्थलचर, चतुष्पद स्थलचर, उरपरिसर्प स्थलचर, भुज परिसर्प स्थलचर और खेचर तिर्यंच पंचेन्द्रियों के प्रत्येक के नौ-नौ सूत्र समझना चाहिए। इस प्रकार सब मिल कर तिर्यंच पंचेन्द्रियों के ६३ (त्रेसठ) सूत्र होते हैं।
मणूस पंचिंदिय ओरालिय सरीरे णं भंते! किं संठाणसंठिए पण्णत्ते? गोयमा! छव्विह संठाणसंठिए पण्णत्ते। तंजहा - समचउरंसे जाव हंडे। भावार्थ- प्रश्न- हे भगवन् ! मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर किस संस्थान वाला कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर छहों प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है, जैसे - समचतुरस्र यावत् हुण्डक संस्थान वाला।
पज्जत्तापज्जत्ताण वि एवं चेव।
भावार्थ - पर्याप्तक और अपर्याप्तक मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर भी इसी प्रकार छहों संस्थान वाले होते हैं। . .. गब्भवक्कंतियाण वि एवं चेव, पजत्तापजत्ताण वि एवं चेव।
भावार्थ - गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर भी इसी प्रकार छहों संस्थान वाले होते हैं। पर्याप्तक अपर्याप्तक गर्भज मनुष्यों के औदारिक शरीर भी छह संस्थान वाले समझने चाहिए।
सम्मुच्छिमाणं पुच्छा? गोयमा! हुंडसंठाणसंठिया पण्णत्ता॥५७०॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सम्मूछिम मनुष्यों चाहे पर्याप्तक हो, या अपर्याप्तक के औदारिक शरीर किस संस्थान वाले होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! सम्मूछिम मनुष्यों के औदारिक शरीर हुण्डक संस्थान वाले होते हैं।
विवेचन - सामान्य तिर्यंच पंचेन्द्रियों के नौ सूत्रों की तरह मनुष्यों में भी नौ सूत्र कहना चाहिए। सभी सम्मूछिम मनुष्य हुण्डक संस्थान वाले और गर्भज मनुष्य छहों संस्थान वाले होते हैं।
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