Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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इक्कीसवां अवगाहना-संस्थान पद - प्रमाण द्वार
___३५३ ।
गोयमा! वाउक्काइय एगिंदिय वेउव्विय सरीरे, णो अवाउक्काइय एगिंदिय वेउव्विय सरीरे।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! यदि एकेन्द्रिय जीवों के वैक्रिय शरीर होता है, तो क्या वायुकायिक एकेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है या अवायुकायिक एकेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है? ।
उत्तर - हे गौतम! वायुकायिक एकेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, अवायुकायिक एकेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर नहीं होता है।
जइ वाउक्काइय एगिदिय वेउव्विय सरीरे किं सुहुमवाउक्काइय एगिदिय वेउव्विय सरीरे, बायर वाउक्काइय एगिदिय वेउव्विय सरीरे?
गोयमा! णो सुहुम वाउक्काइय एगिदिय वेउव्विय सरीरे, बायर वाउक्काइयएगिदियवेउव्विय सरीरे। .
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! यदि वायुकायिक एकेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है तो क्या सूक्ष्म वायुकायिक एकेन्द्रिय के होता है, अथवा बादर वायुकायिक एकेन्द्रिय के होता है?
उत्तर - हे गौतम! सूक्ष्म वायुकायिक एकेन्द्रिय के वैक्रिय शरीर नहीं होता किन्तु बादर वायुकायिक एकेन्द्रिय के वैक्रिय शरीर होता है। .. जइ बायर वाउक्काइय एगिदिय वेउव्विय सरीरे किं पजत्त बायर वाउक्काइय एगिदिय वेउव्विय सरीरे, अपजत्त बायर वाउक्काइय एगिदिय वेउव्विय सरीरे?
गोयमा! पजत्त बायर वाउक्काइय एगिंदिय वेउव्विय सरीरे, णो अपजत्त बायरवाउक्काइय एगिंदिय वेउव्विय सरीरे।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! यदि बादर वायुकायिक एकेन्द्रिय के वैक्रिय शरीर होता है तो क्या पर्याप्तक बादर वायुकायिक एकेन्द्रिय के वैक्रिय शरीर होता है, अथवा अपर्याप्तक बादर वायुकायिक एकेन्द्रिय के होता है?
उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक बादर वायुकायिक एकेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, अपर्याप्तक बादर वायुकायिक एकेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर नहीं होता है।
विवेचन - यहाँ पर पर्याप्तक बादर वायुकायिक एकेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर बताया गया है। वह सभी पर्याप्तक बादर वायुकायिक जीवों के नहीं समझना चाहिए किन्तु वैक्रिय लब्धि युक्त उत्कलिका, मण्डलिका आदि प्रकारों वाली तीव्र गति से चलने वाली वायुकाय के लिए ही समझना चाहिए। सामान्य गति वाली वायु तो लोकान्त तक सर्वत्र (लोक के बहुत असंख्यात भागों में) होती है। जब कि
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