Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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इक्कीसवां अवगाहना-संस्थान पद - प्रमाण द्वार
३५१
जोयणसहस्सं छग्गाउयाइं तत्तो य जोयणसहस्सं। गाउयपुहुत्त भुयए धणुपुहुत्तं च पक्खीसु॥१॥ जोयणसहस्सं गाउयपुहुत्त तत्तो य जोयणपुहुत्तं। दोण्हं तु धणुपुहुत्तं सम्मुच्छिमे होइ उच्चत्तं ॥२॥
भावार्थ - खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के औधिकों, गर्भजों एवं सम्मच्छिमों इन तीनों के औदारिक शरीरों की उत्कृष्ट अवगाहना धनुष पृथक्त्व की होती है।
अर्थ - गर्भज जलचरों की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन की, चतुष्पद स्थलचरों की उत्कृष्ट अवगाहना छह गव्यूति की, तत्पश्चात् उर:परिसर्प-स्थलचरों की अवगाहना एक हजार योजन की होती है। भुजपरिसर्प-स्थलचरों की गव्यूति पृथक्त्व की और खेचर पक्षियों की धनुष पृथक्त्व की औदारिक शरीरावगाहना होती है। ___ सम्मूछिम जलचरों की औदारिक शरीरावगाहना उत्कृष्ट एक हजार योजन की, चतुष्पदस्थलचरों की अवगाहना गव्यूति पृथक्त्व की, उर:परिसॉ की योजन पृथक्त्व की, भुजपरिसॉं की तथा
औधिक और पर्याप्तक इन दोनों एवं सम्मूछिम खेचर पक्षियों की धनुषपृथक्त्व की उत्कृष्ट औदारिक शरीरावगाहना समझनी चाहिए।
- विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों के औदारिक शरीर की अवगाहना का वर्णन किया गया है। सामान्य तिर्यंच पंचेन्द्रिय, जलचर, सामान्य स्थलचर, चतुष्पद, उरपरिसर्प, भुजपरिसर्प
और खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में प्रत्येक के ९-९ सूत्र होते हैं जो इस प्रकार है - औधिक के तीन सूत्र, सम्मूछिम के तीन सूत्र और गर्भज के तीन सूत्र। इनमें सभी अपर्याप्तक जीवों की शरीरावगाहना जघन्य और उत्कृष्ट से अंगुल के असंख्यातवें भाग की होती है। शेष जीवों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें. भाग और उत्कृष्ट सामान्य तिर्यंच पंचेन्द्रिय और जलचर की हजार योजन, सामान्य स्थलचर, सामान्य चतुष्पद स्थलचर और गर्भज स्थलचर की छह गाऊ, सम्मूर्छिम की गाऊ पृथक्त्व,
औधिक, सामान्य उरपरिसर्प और गर्भज उरपरिसर्प की हजार योजन, सम्मूछिम उरपरिसर्प की योजन पृथक्त्व तथा सामान्य भुजपरिसर्प और गर्भज भुजपरिसर्प की गाऊ पृथक्त्व, सम्मूर्छिम भुजपरिसर्प की धनुष पृथक्त्व सामान्य खेचर, गर्भज तथा सम्मूछिम खेचर इन सभी की अवगाहना धनुष पृथक्त्व प्रमाण होती है। इसके लिए दो संग्रहणी गाथाएं भी दी गयी है जिनका भावार्थ इस प्रकार है -
गर्भज जलचरों की उत्कृष्ट शरीरावगाहना हजार योजन, चतुष्पद स्थलचरों की छह गाऊ, उरपरिसर्प स्थलचरों की हजार योजन, भुजपरिसर्प स्थलचर की गाऊ पृथक्त्व, पक्षियों की धनुष पृथक्त्व तथा सम्मूछिम जलचरों का उत्कृष्ट शरीर प्रमाण हजार योजन, चतुष्पद स्थलचरों का गाऊ
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