Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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इक्कीसवां अवगाहना-संस्थान पद - संस्थान द्वार
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४. वामन संस्थान - जिस शरीर में छाती, पीठ, पेट आदि अवयव पूर्ण हों पर हाथ, पैर आदि अवयव छोटे हों, उसे वामन संस्थान कहते हैं।
५. कुब्ज संस्थान - जिस शरीर में हाथ, पैर, सिर, गर्दन आदि अवयव ठीक हों पर छाती, पेट, पीठ आदि टेढ़े हों, उसे कुब्ज संस्थान कहते हैं।
६. हुंडक संस्थान - जिस शरीर के समस्त अवयव बेढब (बेडौल) हों अर्थात् एक भी अवयव शास्त्रोक्त प्रमाण के अनुसार न हो, वह हुंडक संस्थान कहलाता है।
सम्मुच्छिम तिरिक्ख जोणिय पंचिंदिय ओरालिय सरीरेणं भंते! किं संठाणसंठिए पण्णत्ते?
गोयमा! हुंडसंठाणसंठिए पण्णत्ते, एवं पजत्तापजत्ताण वि।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! सम्पूछिम तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर किस संस्थान वाला कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! सम्मूछिम तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर हुंडक संस्थान वाला कहा गया है। इसी प्रकार पर्याप्तक, अपर्याप्तक सम्मूछिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर का संस्थान भी हुण्डक ही समझना चाहिए।
गब्भवक्कंतिय तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय ओरालिय सरीरे णं भंते! किं संठाणसंठिए पण्णत्ते?
गोयमा! छव्विह संठाणसंठिए पण्णत्ते। तंजहा - समचउरंसे जाव हंडसंठाणसंठिए। एवं पजत्तापजत्ताण वि ३। एवमेए तिरिक्खजोणियाणं ओहियाणं णव आलावगा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! गर्भज तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर किस संस्थान वाला कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! गर्भज तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर छहों प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है, वह इस प्रकार है - समचतुरस्र संस्थान से लेकर हुंडक संस्थान तक। इस प्रकार पर्याप्तक, अपर्याप्तक गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय औदारिक शरीरों के भी ये छह संस्थान समझने चाहिए।
. इस प्रकार औधिक (सामान्य) तिर्यंच पंचेन्द्रिय औदारिक शरीरों के संस्थानों के ये पूर्वोक्त नौ आलापक समझने चाहिए।
विवेचन - सामान्य पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की तरह पर्याप्तक और अपर्याप्तक तिर्यंच पंचेन्द्रियों के विषय में भी समझना चाहिए, इस तरह ये तीन सूत्र हुए। इसी प्रकार सम्मूछिम तिर्यंच पंचेन्द्रियों के भी तीन सूत्र कहना चाहिए किन्तु इन तीन सूत्रों में औदारिक शरीर हुण्डक संस्थान वाला कहना चाहिए
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