Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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इक्कीसवां अवगाहना-संस्थान पद - विधि द्वार
३३५
- भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! स्थलचर-तिर्यंचयोनिक-पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! स्थलचर-तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है - चतुष्पद-स्थलचर-तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर और परिसर्प स्थलचर तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर।
चउप्पय थलयर तिरिक्ख जोणिय पंचिंदिय ओरालिय सरीरे णं भंते! कइविहे पण्णते?
गोयमा! दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - सम्मुच्छिम चउप्पय थलयर तिरिक्ख जोणिय पंचेंदिय ओरालिय सरीरे य गब्भवक्कंतिय चउप्पय थलयर तिरिक्ख जोणिय पंचिंदिय ओरालिय सरीरे य। -
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! चतुष्पद-स्थलचर-तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! चतुष्पद-स्थलचर-तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है - सम्मूछिम-चतुष्पद-स्थलचर-तिर्यंचयोनिक-पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर और गर्भज चतुष्पद-स्थलचर-तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर। - सम्मुच्छिम चउप्पयथलयर तिरिक्ख जोणिय पंचिंदिय ओरालियसरीरे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते? ____ गोयमा! दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - पजत्त सम्मुच्छिम चउप्पय थलयर तिरिक्ख जोणिय पंचिंदिय ओरालिय सरीरे य अपजत्त सम्मुच्छिम चउप्पय थलयर तिरिक्ख जोणिय पंचिंदिय ओरालिय सरीरे य।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! सम्मूछिम-चतुष्पद-स्थलचर तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! सम्मूछिम चतुष्पद स्थलचर तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर दो प्रकार का कहा गया है, जैसे पर्याप्तक-सम्मूच्छिम चतुष्पद स्थलचर-तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर और अपर्याप्तक सम्मूछिम चतुष्पद स्थलचर तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर।
एवं गब्भवक्कंतिए वि।
भावार्थ - इसी प्रकार गर्भज चतुष्पद स्थलचर तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर के भी पर्याप्तक और अपर्याप्तक ये दो प्रकार समझ लेने चाहिए।
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