Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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३१० tournamentation
प्रज्ञापना सूत्र
गोयमा! अत्थेगइए लभेजा, अत्यंगइए णो लभेजा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जो पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीव, नैरयिकों में उत्पन्न होता है, क्या वह केवलि प्रज्ञप्त धर्म श्रवण को प्राप्त करता है? .
उत्तर - हे गौतम! उनमें से कोई प्राप्त करता है और कोई प्राप्त नहीं करता है। जे णं केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेजा सवणयाए से णं केवलं बोहिं बुज्झेजा? गोयमा! अत्थेगइए बुज्झेजा, अत्थेगइए णो बुझेजा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जो केवलि प्रज्ञप्त धर्म श्रवण को प्राप्त करता है, क्या वह केवलबोधि- केवलि प्रज्ञप्त धर्म को समझ पाता है ?
उत्तर - हे गौतम! उनमें से कोई केवलबोधि का अर्थ समझता है और कोई नहीं समझता है। जे णं भंते! केवलं बोहिं बुज्झेजा से णं सद्दहेज्जा पत्तिएजा रोएजा? हंता गोयमा! जाव रोएजा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जो केवलबोधि का अर्थ समझता है, क्या वह उस पर श्रद्धा करता है ? प्रतीति करता है? और रुचि करता है?
उत्तर - हे गौतम! वह श्रद्धा, प्रतीति और रुचि करता है।
जे णं भंते! सद्दहेज्जा पत्तिएजा रोएजा से णं आभिणिबोहिय णाण सुयणाण ओहि णाणाई उप्पाडेजा? हंता गोयमा! जाव उप्पाडेजा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जो श्रद्धा-प्रतीति-रुचि करता है, क्या वह आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान प्राप्त कर सकता है ?
उत्तर - हे गौतम! वह आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुत ज्ञान और अवधि ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
जे णं भंते! आभिणिबोहिय णाण सुयणाण ओहिणाणाइं उप्पाडेजा से णं संचाएजा सीलं वा जाव पडिवजित्तए?
गोयमा! णो इणढे समढे।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जो आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान प्राप्त करता है, क्या वह शील आदि से लेकर पोषधोपवास तक अंगीकार कर सकता है?
उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। एवं असुरकुमारेसु वि जाव थणियकुमारेसु।
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