Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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बीसवां अन्तक्रिया पद - अनन्तर द्वार
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२. अनन्तर द्वार णेरड्या णं भंते! किं अणंतरागया अंतकिरियं पकरेंति, परंपरागया अंतकिरियं पकरेंति?
गोयमा! अणंतरागया वि अंतकिरियं पकरेंति, परंपरागया वि अंतकिरियं पकरेंति। कठिन शब्दार्थ - अणंतरागया - अनन्तरागत, परंपरागया - परम्परागत।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! नैरयिक जीव क्या अनन्तरागत अन्तक्रिया करते हैं, अथवा परम्परागत अन्तक्रिया करते हैं?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिक अनन्तरागत अन्तक्रिया भी करते हैं और परम्परागत अन्तक्रिया भी करते हैं।
विवेचन - प्रस्तुत द्वार में अनन्तरागत और परम्परागत अन्तक्रिया का कथन किया गया है। जो जीव नैरयिक आदि भव से मर कर व्यवधान बिना सीधा ही मनुष्य भव में आकर अन्तक्रिया करता है वह अनन्तरागत अंतक्रिया कहलाती है। जो जीव नैरयिक आदि भव के पश्चात् एक या अनेक भव करके फिर मनुष्य भव में आकर अन्तक्रिया करता है उसे परम्परागत अन्त क्रिया कहते हैं। समुच्चय रूप से नैरयिक जीव दोनों प्रकार की अन्तक्रिया करते हैं।
एवं रयणप्पभा पुढवी णेरड्या वि जाव पंकप्पभा पुढवी जेरइया।
भावार्थ - इसी प्रकार रत्नप्रभ नरकपृथ्वी के नैरयिकों से लेकर पंकप्रभा नरकपृथ्वी के नैरयिकों तक की अन्तक्रिया के विषय में समझ लेना चाहिए।
धूमप्पभा पुढवी णेरड्या णं पुच्छा?
गोयमा! णो अणंतरागया अंतकिरियं पकरेंति, परंपरागया अंतकिरियं पकरेंति, एवं जाव अहेसत्तमा पुढवी जेरइया।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्या धूमप्रभा पृथ्वी के नैरयिक अनन्तरागत अन्तक्रिया करते हैं या परम्परागत अन्तक्रिया करते हैं?
उत्तर - हे गौतम ! धूमप्रभा पृथ्वी के नैरयिक अनन्तरागत अन्तक्रिया नहीं करते, किन्तु परम्परागत अन्तक्रिया करते हैं। इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी तक के नैरयिकों की अन्तक्रिया के विषय में जान लेना चाहिए। .. विवेचन - रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा और पंकप्रभा इन चारों नरक पृथ्वियों के नैरयिक अनन्तरागत अन्तक्रिया भी करते हैं और परम्परागत अन्तक्रिया भी करते हैं किन्तु धूमप्रभा, तमःप्रभा
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