Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
बीसवां अन्तक्रिया पद - उद्वर्तन द्वार
३०१
एवं णिरंतरं जाव चउरिदिएसु पुच्छा? गोयमा! णो इणढे समढे।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इसी तरह नैरयिक नैरयिकों में से निकल कर निरन्तर (व्यवधान रहित-सीधा) नागकुमारों से ले कर चतुरिन्द्रिय जीवों तक में उत्पन्न हो सकता है?
उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि नैरयिक जीव नरक से निकल कर सीधा नैरयिकों में, भवनपतियों में और विकलेन्द्रियों में उत्पन्न नहीं हो सकता है। क्योंकि नैरयिक नरक से निकल कर तिर्यंच पंचेन्द्रियों और मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं।
णेरइए णं भंते! णेरइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएसु उववजेजा? . गोयमा! अत्थेगइए उववजेजा, अत्थेगइए णो उववजेजा।
___ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक जीव नैरयिकों में से उद्वर्तन कर अनन्तर (व्यवधान रहित) सीधा पंचेन्द्रियतिर्यंच में उत्पन्न हो सकता है?
उत्तर - हे गौतम! इनमें से कोई उत्पन्न हो सकता है और कोई उत्पन्न नहीं हो सकता। - जेणं भंते! णेरइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएसु उववजेज्जा से णं भंते! केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए?
गोयमा! अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए णो लभेजा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जो नैरयिक नैरयिकों में से निकल कर सीधा तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होता है, क्या वह केवलिप्ररूपित धर्मश्रवण प्राप्त कर सकता है? . . उत्तर - हे गौतम! उनमें से कोई धर्मश्रवण को प्राप्त करता है और कोई नहीं कर सकता।
विवेचन - नैरयिकों को देवों के संयोग से और सम्यग्दृष्टि नैरयिकों से धर्म श्रवण का अवसर मिल सकता है।
जे णं भंते! केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेजा सवणयाए से णं केवलं बोहिं बुझेजा? गोयमा! अत्थेगइए बुझेजा, अत्थेगइए णो बुझेजा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जो केवलि-प्ररूपित धर्मश्रवण प्राप्त कर सकता है, क्या वह केवल (शुद्ध) बोधि को समझ सकता है ?
उत्तर - हे गौतम! इनमें से कोई केवलबोधि को समझ पाता है और कोई नहीं समझ पाता।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org