Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
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हे भगवन्! जो मनुष्य अवधिज्ञान प्राप्त कर लेता है, क्या वह मुण्डित होकर अगारत्व से अनगारधर्म में प्रव्रजित हो सकता है ?
हे गौतम! उनमें से कोई प्रव्रजित हो सकता है और कोई प्रव्रजित नहीं हो सकता है।
जे णं भंते! संचाएजा मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए से णं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा ?
गोयमा! अत्थेगइए उप्पाडेज्जा, अत्थेगइए णो उप्पाडेजा ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जो मनुष्य मुण्डित होकर अगारित्व से अनगारधर्म में प्रव्रजित होने में समर्थ है, क्या वह मनः पर्यवज्ञान को उपार्जित कर सकता है ?
उत्तर - हे गौतम! उसमें से कोई मनः पर्यवज्ञान को उपार्जित कर सकता है और कोई उपार्जित नहीं कर सकता है।
जे भंते! मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा से णं केवलणाणं उप्पाडेज्जा ?
गोयमा! अत्थेगइए उप्पाडेज्जा, अत्थेगइए णो उप्पाडेज्जा ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जो मनुष्य मनः पर्यवज्ञान को उपार्जित कर लेता है, क्या वह . केवलज्ञान को उपार्जित कर सकता है ?
उत्तर - हे गौतम! उसमें से कोई केवलज्ञान को उपार्जित कर सकता है और कोई उपार्जित नहीं कर सकता है।
जे णं भंते! केवलणाणं उप्पाडेजा से णं सिज्झेजा बुज्झेजा मुच्चेज्जा सव्वदुक्खाणं अंतं करेज्जा ?
गोयमा ! सिज्झेजा जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेज्जा ।
कठिन शब्दार्थ - सिज्झेज्जा - सर्वकार्य सिद्ध कर लेता है, कृतकृत्य हो जाता है, बुज्झेज्जा - समस्त लोकालोक के स्वरूप को जानता है, मुच्चेज्जा - भवोपग्राही कर्मों से मुक्त हो जाता है।
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भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जो मनुष्य केवलज्ञान को उपार्जित कर लेता है, क्या वह सिद्ध हो सकता है, बुद्ध हो सकता है, मुक्त हो सकता है, यावत् सब दुःखों का अन्त कर सकता है ?
उत्तर - हे गौतम! वह अवश्य ही सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो जाता है, यावत् समस्त दुःखों का अन्त कर देता है ।
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विवेचन - नरक से उद्वर्त्तन कर तिर्यंच पंचेन्द्रियों और मनुष्यों में उत्पन्न होने वाले जीव केवलि प्रज्ञप्त धर्म श्रवण, शुद्ध बोधि, श्रद्धा, प्रतीति, रुचि, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, शीलव्रत गुण - विरमण प्रत्याख्यान
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