Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
GÓC Ô TÔ ĐUÔI Ô TÔ CÓ Ô QUỔI QUỐC QUỐC Ô TÔ ĐUÔI
और तमस्तमः प्रभा पृथ्वियों के नैरयिक केवल परम्परागत अन्तक्रिया ही करते हैं अर्थात् नरक के बाद एक या अनेक भव करके फिर मनुष्य भव में आकर तथाविध साधना करके मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं । असुरकुमारा जाव थणियकुमारा पुढवी- आउ-वणस्सइकाइया य अणंतरागया वि अंतकिरियं पकरेंति परंपरागया वि अंतकिरियं पकरेंति ।
भावार्थ - असुरकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक के भवनपति देव तथा पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक- एकेन्द्रिय जीव अन्तरागत भी अन्तक्रिया करते हैं और परम्परागत भी अन्तक्रिया करते हैं ।
तेउ वाउ बेइंदिय इंदिय चउरिंदिया णो अणंतरागया अंतकिरियं पकरेंति, परंपरागया अंतकिरियं पकरेंति ।
भावार्थ - तेजस्कायिक, वायुकायिक एवं बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चउरिन्द्रिय त्रस जीव अनन्तरागत अन्तक्रिया नहीं करते, किन्तु परम्परागत अन्तक्रिया करते हैं ।
सेसा अनंतरागया व अंतकिरियं पकरेंति, परंपरागया वि अंतकिरियं पकरेंति ॥५५७॥
भावार्थ - शेष सभी जीव अनन्तरागत भी अन्तक्रिया करते हैं और परम्परागत भी अन्तक्रिया करते हैं।
विवेचन - भवनपति देव एवं पृथ्वी अप् तथा वनस्पतिकाय में से आने वाले जीव दोनों प्रकार से अन्तक्रिया कर सकते हैं जबकि तेजस्कायिक् वायुकायिक एवं तीन विकलेन्द्रिय के जीव परम्परा अन्तक्रिया ही कर सकते हैं। इनके अलावा तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य, वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों में जिनकी योग्यता होती है वे अनन्तरागत अन्तक्रिया करते हैं और जिनकी योग्यता नहीं होती वे परम्परागत अन्तक्रिया करते हैं।
३. एक समय द्वार
अणंतरागया णं भंते! णेरड्या एगसमए केवइया अंतकिरियं पकरेंति ? गोयमा! जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं दस ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अनन्तरागत कितने नैरयिक एक समय में अन्तक्रिया करते हैं ? उत्तर- हे गौतम! वे एक समय में जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट दस अन्तक्रिया करते हैं। रयणप्पभा पुढवी णेरइया वि एवं चेव जाव वालुयप्पभा पुढवी णेरइया ।
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