Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 279
________________ २६६ ०००००००००० - में क्रोध उदय के बाद तत्काल लोभ का उदय नहीं होता है। क्रोध उदय विच्छेद के बाद अन्तर्मुहूर्त्त तक मान का उदय रहता है। फिर मानोदय विच्छेद के बाद अन्तर्मुहूर्त्त तक माया का उदय रहता है । माया के उदय का विच्छेद होने के बाद फिर लोभ का उदय हो सकता है। माया के बाद लोभ में एक समय रह कर जीव काल कर सकता है। काल करने के बाद पुनः माया का उदय हो जावे तो लोभ कषाय की एक समय की स्थिति घटित हो जाती है। लेकिन जीवाभिगम सूत्र में क्रोध मान माया इन तीनों कषायों का अन्तर जघन्य एक समय का बताया है। अतः तथास्वभाव से ही लोभ कषाय की एक समय की स्थिति होती है। बिना श्रेणी के भी स्वभाव से ही लोभ का उदय जघन्य एक समय में बदल सकता है। ऐसा मानना उचित लगता है। प्रज्ञापना सूत्र 100000000000 अकसाई णं भंते! अकसाइत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! अकसाई दुविहे पण्णत्ते । तंजहा - साइए वा अपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जे से साइए सपज्जवसिए से जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं ॥ दारं ७ ॥ ५३९ ॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! अकषायी, अकषायी के रूप में कितने काल तक रहता है ? उत्तर हे गौतम! अकषायी दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं १. सादिअपर्यवसित और २. सादि - सपर्यवसित। इनमें से जो सादि - सपर्यवसित है, वह जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त तक अकषायी रूप में रहता है । ॥ सप्तम द्वार ॥ ७॥ विवेचन - अकषायी सूत्र भी अवेदक की तरह समझ लेना चाहिए । ८. लेश्या द्वार सलेसे णं भंते! सलेसे त्ति पुच्छा ? गोयमा ! सलेसे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा वा सपज्जवसि । - Jain Education International 0000000000 - 000000000 - भावार्थ - प्रश्न हे भगवन्! सलेश्यजीव सलेश्य अवस्था में कितने काल तक रहता है ? - १. अनादि उत्तर हे गौतम! सलेश्य दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं अपर्यवसित और २. अनादि - सपर्यवसित । For Personal & Private Use Only अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए www.jainelibrary.org

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