Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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एगूणवीसइमं सम्मत्तपयं उन्नीसवाँ सम्यक्त्व पद
प्रज्ञापना सूत्र के अठारहवें पद में कायस्थिति का वर्णन किया गया है इस उन्नीसवें पद में कौनसी कायस्थिति में सम्यग्-दृष्टि आदि भेद से कितने प्रकार के जीव होते हैं इसका वर्णन किया जाता है। .
जीव की उन्नति और अवनति के लिए मोक्ष मार्ग और संसार मार्ग ये दो मार्ग हैं। जब जीव सम्यग्दृष्टि हो जाता है तो वह मोक्ष मार्ग की सम्यग् आराधना करके मोक्ष प्राप्त कर लेता है। जब तक वह मिथ्यादृष्टि रहता है तब तक उसकी प्रवृत्ति संसार मार्ग की ओर ही होती है। उसकी जितनी भी धार्मिक क्रिया, व्रताचरण, तपश्चर्या, नियम, त्याग प्रत्याख्यान आदि क्रियाएं होती हैं वे अशुद्ध होती हैं, उसका पराक्रम अशुद्ध होता है उससे संसार वृद्धि ही होती है। कर्म क्षय करके मोक्ष प्राप्ति वह नहीं कर सकता। इसी आशय से शास्त्रकार प्रस्तुत पद में तीनों दृष्टियों की चर्चा . करते हैं। जिसका प्रथम सूत्र है -
जीवा णं भंते! किं सम्म दिट्ठी, मिच्छ दिट्ठी, सम्मा मिच्छ दिट्ठी? गोयमा! जीवा सम्म दिट्ठी वि, मिच्छ दिट्ठी वि, सम्मा मिच्छ दिट्ठी वि। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं अथवा सम्यगमिथ्यादृष्टि हैं? उत्तर - हे गौतम! जीव सम्यग्दृष्टि भी हैं, मिथ्यादृष्टि भी हैं और सम्यग्मिथ्यादृष्टि भी हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में समुच्चय जीवों के विषय में दृष्टि की प्ररूपणा की गई है। तीनों दृष्टियों का स्वरूप इस प्रकार है -
प्रश्न - सम्यग् दृष्टि किसे कहते हैं ? उत्तर - "सम्यग्-अविपरीता दृष्टि-दर्शनं रुचिस्तत्त्वानि प्रति येषां ते सम्यग्दृष्टिकाः।"
अर्थ - जो जीव आदि पदार्थों को सम्यग् प्रकार से जानता है और उन पर श्रद्धा करता है। वह सम्यग्दृष्टि जीव है।
प्रश्न - मिथ्यादृष्टि किसे कहते हैं ? उत्तर - "मिथ्यादृष्टिका:-मिथ्यात्व मोहनीय कर्मोदयादरुचित जिनवचना।'
अर्थ - वीतराग भगवन्तों के द्वारा कथित जीवादि तत्त्वों के ऊपर जिसकी श्रद्धा विपरीत हो, उसे मिथ्यादृष्टि कहते हैं। . प्रश्न - मिश्रदृष्टि (सम्यग् मिथ्यादृष्टि) किसे कहते हैं ?
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