Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
भावार्थ - पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक, मनुष्य, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देव सम्यग्दृष्टि भी होते हैं, मिथ्यादृष्टि भी होते हैं और मिश्र (सम्यग्मिथ्या) दृष्टि भी होते हैं।
सिद्धा णं पुच्छा? गोयमा! सिद्धा सम्मदिट्ठी, णो मिच्छदिट्ठी, णो सम्मामिच्छदिट्ठी॥५५५॥ .
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! सिद्ध (मुक्त) जीव सम्यग्दृष्टि होते हैं, मिथ्यादृष्टि होते हैं या सम्यग्मिथ्यादृष्टि होते हैं?
उत्तर - हे गौतम! सिद्ध जीव सम्यग्दृष्टि ही होते हैं, वे न तो मिथ्यादृष्टि होते हैं और न ही सम्यग्मिथ्यादृष्टि होते हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में चौबीस दण्डक के जीवों में तीन दृष्टियों में से कौन-कौनसी दृष्टियाँ पाई जाती है इसका वर्णन किया गया है। सास्वादन सम्यक्त्व सहित जीव पृथ्वीकाय आदि में उत्पन्न नहीं होता क्योंकि 'उभयाभावो पुढवाइएस' पृथ्वीकायिक आदि में उभय-सम्यक्त्व और सम्यक्त्व सहित जीव की उत्पत्ति का अभाव है - ऐसा शास्त्र वचन है। बेइन्द्रिय आदि में सास्वादन सम्यक्त्व सहित जीव उत्पन्न होता है अत: पृथ्वीकाय आदि में सम्यग्दृष्टि का निषेध किया है और बेइन्द्रिय आदि । में सम्यग्दृष्टि कही गयी है। सम्यग् मिथ्यादृष्टि का परिणाम स्वभाव से ही संज्ञी पंचेन्द्रियों को होता है । शेष को नहीं, अतः एकेन्द्रियों और तीन विकलेन्द्रियों में सम्यग्मिथ्यादृष्टि का निषेध किया है।
यहाँ पर जिन दण्डकों में तीनों दृष्टियाँ बतलाई गयी है उन दण्डक वाले एक एक जीव में एक साथ एक समय में एक ही दृष्टि होती है क्योंकि तीनों दृष्टियाँ परस्पर विरोधी होने से एक जीव में एक समय में एक साथ एक ही दृष्टि पायी जा सकती है।
इस पद में वैमानिक दंवों में समुच्चय रूप से वर्णन होने से तीनों दृष्टियों का कथन किया गया है। अलग-अलग देवलोकों का वर्णन नहीं किया गया है। पूज्य अमोलक ऋषि जी म. सा. ने इस पद में कुछ पाठ बढ़ा दिया है और जीवाभिगम सूत्र में भी पाठ बढ़ा दिया गया है। किन्तु भगवती सूत्र (शतक तेरह उद्देशक एक दो तथा शतक चौबीस उद्देशक चौबीस) का पाठ सीधा नहीं होने से तथा विशेष उपयोग बिना मालूम नहीं पड़ने से वह पाठ जैसा का जैसा ही रह गया अतः प्राचीन प्रतियों से भी नव ग्रैवेयक देवों में तीनों दृष्टियाँ होना स्पष्ट होता है।
तीनों दृष्टियों की अल्प बहुत्व इस प्रकार से होती हैं- १. सब से थोड़े मिश्र दृष्टि जीव २. उनसे सम्यग्दृष्टि जीव अनन्त गुणा ३. उनसे मिथ्यादृष्टि जीव अनन्त गुणा।
॥पण्णवणाए भगवईए एगूणवीसइमं सम्मत्तपयं समत्तं॥ ॥प्रज्ञापना भगवती सूत्र का उन्नीसवाँ सम्यक्त्व पद समाप्त॥
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