Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अठारहवाँ कायस्थिति पद - उपयोग द्वार
को किसी भी काल में प्राप्त नहीं करेगा वह अनादि अनंत २. अनादि सपर्यवसित ( सान्त) - जो संयम को प्राप्त करेगा वह अनादि सान्त और ३. सादि सपर्यवसित (सान्त) - जो संयम को प्राप्त कर उससे भ्रष्ट (पतित) हो जाय वह सादि सान्त असंयत है । वह जघन्य से अन्तर्मुहूर्त तक होता है क्योंकि अन्तर्मुहूर्त के बाद संयम की प्राप्ति होती है। असंयत उत्कृष्ट से अनंतकाल तक असंयत पर्याय में रहता है। अनन्त काल (काल से अनंत उत्सर्पिणी अवसर्पिणी और क्षेत्र से कुछ कम अर्द्ध पुद्गल परावर्त्तन) के बाद उसे संयम की प्राप्ति अवश्य होती है ।
संजयासंजए णं पुच्छा ?
गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं देसूणं पुव्वकोडिं ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! संयतासंयत कितने काल तक संयतासंयत रूप में रहता है। उत्तर - हे गौतम! संयतासंयत जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त तक और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि तक संयतासंयत रूप में रहता है।.
विवेचन - संयतासंयत ( देश विरति वाला) की जघन्य कायस्थिति अन्तर्मुहूर्त होती है क्योंकि देशविरति की प्राप्ति का उपयोग जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त पर्यन्त होता है । देशविरति के दो करण, तीन योग आदि बहुत भंग होते हैं अतः उसे स्वीकार करने में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त लगता है। सर्वविरति तो " सर्व सावद्य का मैं त्याग करता हूँ ।" इत्यादि रूप है अतः इसकी प्रतिज्ञा अङ्गीकार करने का उपयोग एक समय भी हो सकता है अतः संयत का जघन्य काल एक समय कहा गया है।
णोसंजए - णोअसंजए णो संजयासंजए णं पुच्छा ?
गोयमा ! साइए अपज्जवसिए ॥ दारं १२ ॥ ५४४ ॥
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भावार्थ- प्रश्न हे भगवन् ! नोसंयत, नोअसंयत, नोसंयतासंयत कितने काल तक नोसंयत, नोअसंयत, नोसंयतासंयत रूप में बना रहता है ?.
उत्तर - हे गौतम! वह सादि - अपर्यवसित है। ॥ बारहवाँ द्वार ॥ १२ ॥
विवेचन - जो संयत नहीं है, असंयत नहीं है और संयतासंयत भी नहीं है, वे जीव सिद्ध ही होते हैं और सिद्ध सादि अनन्त हैं।
१३. उपयोग द्वार
'सागारोवउत्ते णं भंते! पुच्छा ?
गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।
२७७
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! साकारोपयोग युक्त जीव निरन्तर कितने काल तक साकारोपयोग युक्त रूप में बना रहता है ?
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