Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अठारहवाँ कार्यस्थिति पद - आहारक द्वार
सिद्ध केवलि अणाहारए णं पुच्छा ?
गोयमा ! साइए अपज्जवसिए ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! सिद्धकेवली अनाहारक कितने काल तक सिद्धकेवली - अनाहारक के रूप में रहता है ?
उत्तर - हे गौतम! सिद्धकेवली - अनाहारक सादि - अपर्यवसित है।
भवत्थ केवल अणाहारए णं भंते! पुच्छा ?
गोयमा ! भवत्थ केवल अणाहारए दुविहे पण्णत्ते । तंजहा - सजोगि भवत्थ केवल अणाहारए य अजोगि भवत्थ केवलि अणाहारए य ।
भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! भवस्थकेवली - अनाहारक कितने काल तक निरन्तर भवस्थकेवलीअनाहारक रूप में रहता है ?
उत्तर हे गौतम! भवस्थकेवली - अनाहारक दो प्रकार के हैं
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अनाहारक और २. अयोगि- भवस्थकेवली - अनाहारक ।
सजोगि भवत्थ केवलि अणाहारए णं भंते! पुच्छा ?
गोमा ! अजहणमणुक्कोसेणं तिण्णि समया ।
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भावार्थ प्रश्न हे भगवन् ! सजोगि भवस्थकेवली - अनाहारक कितने काल तक सयोगिभवस्थ - केवली - अनाहारक के रूप में रहता है ?
उत्तर - हे गौतम! अजघन्य - अनुत्कृष्ट तीन समय तक सयोगि भवस्थ केवली - अनाहारक रूप में रहता है।
" दण्डं प्रथमे समये कपाटमथ चोत्तरे तथा समये । मन्थानमथ तृतीये लोकव्यापी चतुर्थे तु ॥ १ ॥ संहरति पंचमे त्वन्तराणि मन्थानमथ तथा षष्ठे । सप्तमके तु कपाटं संहरति ततोऽष्टमे दण्डम् ॥ २ ॥ औदारिक प्रयोक्ता प्रथमाष्टसमययोरसाविष्टः । मिश्रीदारिक योक्ता सप्तमषष्ठ द्वितीयेषु ॥ ३ ॥
विवेचन - सयोगी भवस्थ केवली अनाहारक की कायस्थिति अजघन्य अनुत्कृष्ट तीन समय की केवली समुद्घात की अपेक्षा से कही गयी है । केवली समुद्घात के आठ समयों में तीसरे, चौथे और पांचवें समय में जीव अनाहारक रहता है। कहा है कि
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१. सयोगि- भवस्थकेवली
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