Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अठारहवाँ कायस्थिति पद - सम्यक्त्व द्वार
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उत्कृष्ट स्थिति भी इतनी ही है। पूर्व भव और उत्तर भव के दोनों अन्तर्मुहूर्त का समावेश एक ही अन्तर्मुहूर्त में हो जाने के कारण अन्तर्मुहूर्त अधिक कहा गया है।
सुक्कलेस्से णं पुच्छा? - गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्त मब्भहियाइं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! शुक्ल लेश्या वाला जीव कितने काल तक शुक्ल लेश्या वाला रहता है? ___ उत्तर - हे गौतम! शुक्ल लेश्या वाला जीव जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम तक शुक्ललेश्या वाला रहता है।
विवेचन - शुक्ललेशी की. उत्कृष्ट कायस्थिति अन्तर्मुहूर्त्त अधिक तेतीस सागरोपम की कही गयी है, यह अनुत्तर विमानवासी देवों की अपेक्षा समझनी चाहिये क्योंकि उनकी उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की होती है।
अलेस्से णं पुच्छा? गोयमा! साइए अपज्जवसिए॥दारं ८॥५४०॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अलेश्यी जीव कितने काल तक अलेश्यी रूप में रहता है ? उत्तर - हे गौतम! अलेश्यी अवस्था सादि-अपर्यवसित है। ॥ अष्टम द्वार॥८॥
विवेचन - अलेशी-लेश्या रहित जीव अयोगी केवली और सिद्ध होते हैं वे सदा काल लेश्यातीत रहते हैं इसलिए अलेशी अवस्था को सादि अपर्यवसित कहा गया है।
. ९.सभ्यक्त्व द्वार सम्महिटी णं भंते! सम्मदिद्धित्ति कालओ केवच्चिरं होइ? ___गोयमा! सम्मट्ठिी दुविहे पण्णत्ते। तंजहा-साइए वा अपजवसिए, साइए वा सपजवसिए। तत्थ णं जे से साइए सपज्जवसिए से जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावढेि सागरोवमाइं साइरेगाई।
. भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सम्यग्दृष्टि जीव कितने काल तक सम्यग्दृष्टि रूप में रहता है ? . उत्तर - हे गौतम! सम्यग्दृष्टि जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, वे इस प्रकार हैं - १. सादि
अपर्यवसित और २. सादि-सपर्यवसित ! इनमें से जो सादि-सपर्यवसित है, वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टं कुछ अधिक छियासठ सागरोपम तक सादि-सपर्यवसित सम्यग्दृष्टि रूप में रहता है।
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