Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
अपर्यवसित (अनन्त) और २. सादि-सपर्यवसित (सान्त)। उनमें से जो सादि-सान्त है, वह जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक निरन्तर अवेदक रूप में रहता है। ॥ छठा द्वार॥ ५॥
विवेचन - वेद रहित जीव (अवेदक) दो प्रकार के कहे गये हैं - १. सादि अनन्त और २. सादि सान्त। उनमें से जो जीव क्षपक श्रेणी प्राप्त करके वेद रहित हो जाते हैं वे सादि अनन्त कहलाते हैं क्योंकि क्षपक श्रेणी से जीव पतित नहीं होता। जो जीव उपशम श्रेणी प्राप्त करके वेदोदय रहित होते हैं वे सादि सान्त हैं। सादि सान्त अवेदक की कायस्थिति जघन्य एक समय की कही गयी है। जब कोई जीव एक समय वेदोदय रहित होकर दूसरे समय मृत्यु को प्राप्त कर देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होता है तब वह पुरुष वेद का उदय होने से सवेदक हो जाता हैं इस कारण अवेदक की जघन्य स्थिति एक समय की कही गयी है। उत्कृष्ट स्थिति अंतर्मुहूर्त कही गई है क्योंकि अन्तर्मुहूर्त के पश्चात् श्रेणी से पतित होने पर उसके अवश्य कोई भी एक वेद का उदय हो जाता है।
७. कक्षाय द्वार सकसाई णं भंते! सकसाइत्ति कालओ केवच्चिरं होइ? . गोयमा! सकसाई तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - अणाइए वा अपंजवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए, साइए वा सपजवसिए जाव अवर्ल्ड पोग्गलपरियट्टू देसूणं। . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! सकषायी जीव कितने काल तक सकषायी रूप में रहता है?
उत्तर - हे गौतम! पकषायी जीव तीन प्रकार के कहे हैं, वे इस प्रकार हैं - १. अनादिअपर्यवसित २. अनादि-सपर्यवसित और ३. सादि-सपर्यवसित। इनमें से जो सादि-सपर्यवसित हैं, उसका कथन सादि-सपर्यवसित सवेदक के कथनानुसार यावत् क्षेत्रतः देशोन अपार्द्ध (अर्ध) पुद्गलपरावर्तन तक कहना चाहिए।
कोहकसाई णं भंते! पुच्छा? .. गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं, एवं जाव माण माया कसाई।
भावार्थ-प्रश्न - हे भगवन्! क्रोधकषायी क्रोधकषायी पर्याय से युक्त कितने काल तक रहता है?
उत्तर - हे गौतम! क्रोध कषायी जघन्य से भी और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त तक क्रोध
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