Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सम्पर
प्रज्ञापना सूत्र
वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच असंख्यात गुणा हैं, उनसे नील लेश्या वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्ण लेश्या वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच विशेषाधिक हैं।
विवेचन
इस नौवें अल्पबहुत्व में सामान्य पंचेन्द्रिय तिर्यंच और तिर्यंच स्त्री विषयक निरूपण
किया गया है।
एएसि णं भंते! तिरिक्ख जोणियाणं तिरिक्ख जोणिणीण य कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
गोयमा! जहेव णवमं अप्पाबहुगं तहा इमं पि, णवरं काउलेस्सा तिरिक्खजोणिया अनंतगुणा । एवं एए दस अप्पाबहुगा तिरिक्ख जोणियाणं ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इन तिर्यंच योनिकों और तिर्यंच योनिक स्त्रियों में से कृष्णलेश्या से लेकर यावत् शुक्ल लेश्या वालों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ?
उत्तर - हे गौतम! जैसे नौवां कृष्णादि लेश्या वाले तिर्यंच योनिक सम्बन्धी अल्पबहुत्व कहा है, वैसे यह दसवां भी समझ लेना चाहिए। विशेषता यह है कि "कापोत लेश्या वाले तिर्यंच योनिक अनन्त गुणा होते हैं", ऐसा कहना चाहिए। इस प्रकार ये दस अल्पबहुत्व तिर्यंचों के कहे गये हैं ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में सामान्य तिर्यंच और तिर्यंच स्त्री का दसवां अल्पबहुत्व कहा है। इस प्रकार तिर्यंचों के दस अल्पबहुत्व कहे गये हैं जिनकी संग्रहणी गाथाएँ इस प्रकार हैं -
ओहिय पणिदि ९ सम्मुच्छिमा २ य गब्भे ३ तिरिक्ख इत्थीओ ४ ।
समुच्छ गब्ध तिरिया ५ मुच्छ तिरिक्खी य ६ गब्धंमि ७ ॥ १ ॥
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सम्मुच्छिम गब्ध इत्थी ८ पणिंदी तिरिगित्थीया य ९ ओहित्थी १० । दस अप्प बहुग भेआ तिरियाणं होंति नायव्वा ॥ २॥
१. औधिक सामान्य तिर्यंच पंचेन्द्रिय २. सम्मूच्छिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय ३. गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय ४. तिर्यंच स्त्रियाँ ५. सम्मूच्छिम और गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय ६. सम्मूच्छिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय और तिर्यंच स्त्री ७. गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय और तिर्यंच स्त्री . ८. सम्मूच्छिम एवं गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय और तिर्यंच स्त्री ९. पंचेन्द्रिय तिर्यंच और तिर्यंच स्त्री १०. ओघ - सामान्य तिर्यंच और तिर्यंच स्त्री, ये तिर्यचों के दस अल्पबहुत्व जानना चाहिए।
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एवं मसाणं वि अप्पाबहुगा भाणियव्वा, णवरं पच्छिमगं अप्पाबहुगं णत्थि ॥ ४९० ॥ भावार्थ - इसी प्रकार कृष्णादि लेश्या वाले मनुष्यों का भी अल्प बहुत्व कहना चाहिए। परन्तु उनमें अंतिम अल्पबहुत्व नहीं बनती है।
विवेचन - जिस प्रकार तिर्यंचों के दस अल्प बहुत्व कहे हैं उसी प्रकार मनुष्यों के भी
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