Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सत्तरहवाँ लेश्या पद-तृतीय उद्देशक - कृष्णादि लेश्या वाले नैरयिकों में....
२०१
प्रश्न - हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि नील लेश्या वाला नैरयिक, कृष्ण लेश्या वाले नैरयिक की अपेक्षा यावत् क्षेत्र को विशुद्धतर जानता है तथा क्षेत्र को विशुद्धतर देखता है ?
· उत्तर - हे गौतम! जैसे कोई पुरुष अतीव सम रमणीय भूमिभाग से पर्वत पर चढ़ कर सभी दिशाओं-विदिशाओं में अवलोकन करे, तो वह पुरुष भूतल पर स्थित पुरुष की अपेक्षा, सब तरफ देखता हुआ बहुतर क्षेत्र को जानता-देखता है, यावत् क्षेत्र को विशुद्धतर जानता-देखता है। इस कारण से हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि नील लेश्या वाला नैरयिक कृष्ण लेश्या वाले नैरयिक की अपेक्षा क्षेत्र को यावत् विशुद्धतर रूप से जानता देखता है।
काउलेस्से णं भंते! णेरइए णीललेस्सं णेरइयं पणिहाय ओहिणा सव्वओ समंता समभिलोएमाणे समभिलोएमाणे केवइयं खेत्तं जाणइ० पासइ?
गोयमा! बहुतरागं खेत्तं जाणइ० पासइ जाव विसुद्धतरागं खेत्तं पासइ।
से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ - 'काउलेस्से णं णेरइए जाव विसुद्धतरागं खेत्तं पासइ?'
गोयमा! से जहाणामए केइ पुरिसे बहुसमरमणिजाओ भूमिभागाओ पव्वयं दुरूहइ दुरूहित्ता रूक्खं दुरूहइ दुरूहित्ता दो वि पाए उच्चाविय (उच्चावइत्ता) सव्वओ समंता समभिलोएजा, तए णं से पुरिसे पव्वयगयं धरणितलगयं च पुरिसं पणिहाय सव्वओ समंता समभिलोएमाणे समभिलोएमाणे बहुतरागं खेत्तं जाणइ, बहुतरागं खेत्तं पासइ जाव वितिमिरतरागं खेत्तं पासइ? -- से तेणद्वेणं गोंयमा! एवं वुच्चइ-काउलेस्से णं णेरइए णीललेस्सं णेरइयं पणिहाय तं चेव जाव वितिमिरतरागं खेत्तं पासइ'॥५०३॥
कठिन शब्दार्थ - उच्चाविय (उच्चावइत्ता)-ऊँचा करके।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! कापोत लेश्या वाला नैरयिक नील लेश्या वाले नैरयिक की अपेक्षा अवधि ज्ञान से सभी दिशाओं-विदिशाओं में सब ओर देखता हुआ कितने क्षेत्र को जानता है, कितने अधिक क्षेत्र को देखता है?
उत्तर - हे गौतम! वह कापोत लेशी नैरयिक नील लेशी नैरयिक की अपेक्षा बहुतर क्षेत्र को जानता है, बहुतर क्षेत्र को देखता है, दूरतर क्षेत्र को जानता है, दूरतर क्षेत्र को देखता है तथा यावत् क्षेत्र को विशुद्धतर रूप से जानता देखता है।
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