Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
कठिन शब्दार्थ - पप्प - पाकर-प्राप्त होकर, तारूवत्ताए - तद्रूपतया-उसी रूप में, दूसिं - दूष्य- . छाछ आदि खटाई का जावण, रागं - राग-मजीठ आदि रंग।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्या कृष्ण लेश्या नील लेश्या को प्राप्त हो कर उसी रूप में, उसी के वर्ण रूप में, उसी के गन्ध रूप में, उसी के रस रूप में, उसी के स्पर्श रूप में पुनः पुनः परिणत होती है? ____ उत्तर - हाँ, गौतम! कृष्ण लेश्या नील लेश्या को प्राप्त होकर उसी रूप में यावत् पुनः पुनः परिणत होती है।
प्रश्न - हे भगवन्! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि कृष्ण लेश्या नील लेश्या को प्राप्त . करके उसी रूप में यावत् बार-बार परिणत होती है?
उत्तर - हे गौतम! जैसे छाछ आदि खटाई का जावण पाकर दूध अथवा शुद्ध वस्त्र, रंग लाल, पीला आदि का सम्पर्क पाकर उस रूप में, उसी के वर्ण-रूप में, उसी के गन्ध-रूप में, उसी के रसरूप में, उसी के स्पर्श-रूप में पुनः पुनः परिणत हो जाता है, इसी प्रकार हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि कृष्ण लेश्या नील लेश्या को पा कर उसी के रूप में यावत् पुनः पुनः परिणत होती है।
एवं एएणं अभिलावेणं णीललेस्सा काउलेस्सं पप्य, काउलेस्सा तेउलेस्सं पप्प, तेउलेस्सा पम्हलेस्सं पप्प, पम्हलेस्सा सुक्कलेस्से पप्प जाव भुजो-भुजो परिणमइ ॥५०५॥
भावार्थ - इसी प्रकार पूर्वोक्त अभिलाप (कथन) के अनुसार नील लेश्या कापोत लेश्या को प्राप्त होकर, कापोत लेश्या तेजो लेश्या को प्राप्त होकर, तेजो लेश्या पद्मलेश्या को प्राप्त होकर और पद्म लेश्या शुक्ल लेश्या को प्राप्त होकर उसी के रूप में और यावत् उसी के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के रूप में पुनः पुनः परिणत हो जाती है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में लेश्या परिणाम की प्ररूपणा की गयी है। एक लेश्या का दूसरी लेश्या के रूप में तथा उसी के वर्ण आदि के रूप में परिणत (परिवर्तित) हो जाना लेश्या परिणाम है। यह परिणमन मनुष्य और तिर्यंच की अपेक्षा से कहा है। जब कोई कृष्ण लेश्या के परिणाम वाला तिर्यंच या मनुष्य भवान्तर में जाने वाला होता है और वह नील लेश्या के योग्य द्रव्यों को ग्रहण करता है तब नील लेश्या योग्य द्रव्य के संबंध से वे कृष्ण लेश्या के योग्य द्रव्य तथारूप जीव के परिणाम रूप सहयोगी कारण को प्राप्त कर नील लेश्या के द्रव्य रूप में परिणत हो जाते हैं क्योंकि पुद्गलों का उस उस रूप में परिणत होने का स्वभाव है। इसलिए वह केवल नील लेश्या योग्य द्रव्य की प्रधानता से नील लेश्या के परिणाम वाला होकर काल करके भवान्तर में उत्पन्न होता है। कहा है कि - "जल्लेसाइं दवाई परियाइत्ता कालं करेइ नल्लेस्से उववजइ" जीव जिन लेश्या द्रव्यों को ग्रहण कर काल करता है
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