Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सत्तरहवाँ लेश्या पद-चतुर्थ उद्देशक - गंध द्वार
२१९
कइ णं भंते! लेस्साओ सुब्भिगंधाओ पण्णत्ताओ?
गोयमा! तओ लेस्साओ सुब्भिगंधाओ पण्णत्ताओ। तंजहा - तेउलेस्सा, पम्हलेस्सा, सुक्कलेस्सा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! कितनी लेश्याएँ सुगन्ध वाली कही गई हैं?
उत्तर - हे गौतम! तीन लेश्याएँ सुगन्ध वाली कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं - तेजो लेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में प्रारंभ की तीन लेश्याएं दुर्गन्ध वाली और अंत की तीन लेश्याएं सुगंध वाली कही गयी है। उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन ३४ गाथा १६-१७ में इन लेश्याओं की गंध के बारे में इस प्रकार वर्णन किया गया है -
जह गोमडस्स गंधो, सुणगमडस्स व जहा अहिमडस्स। एत्तो वि अणंतगुणो, लेसाणं अप्पसत्थाणं॥१६॥
अर्थात् - जिस प्रकार गाय के मृतक कलेवर की, कुत्ते के मृतक शरीर की और सांप के मृतक शरीर की दुर्गन्ध होती है उससे भी अनंतगुण दुर्गन्ध अप्रशस्त लेश्याओं (क्रमशः कृष्ण लेश्या नील लेश्या और कापोत लेश्या) की होती है।
जह सुरहिकुसुम गंधो, गंधवासाण पिस्समाणाणं। एत्तो वि अणंतगुणो, पसत्थलेसाण तिण्हं पि॥१७॥
अर्थात् - जैसी सुगन्धित फूलों की सुगन्ध होती है या पीसे जाते हुए चन्दन आदि सुगन्धित पदार्थों की जैसी सुगन्ध होती है उससे भी अनन्त गुण सुगन्ध तीनों प्रशस्त लेश्याओं (तेजो लेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या) की होती है।
५-६-७-८-९ शुद्ध-प्रशस्त-संक्लिष्ट-उष्ण-गति द्वार .. एवं तओ अविसुद्धाओ, तओ विसुद्धाओ, तओ अप्पसत्थाओ, तओ पसत्थाओ, तओ संकिलिट्ठाओ, तओ असंकिलिट्ठाओ, तओ सीयलुक्खाओ, तओ णिद्धण्हाओ, तओ दुग्गइ गामियाओ, तओ सुगई गामियाओ॥५२१॥
कठिन शब्दार्थ - दुग्गइ गामियाओ - दुर्गति गामिनी (दुर्गति में ले जाने वाली), सुगई गामियाओ- सुगतिगामिनी (सुगति में ले जाने वाली)। . भावार्थ - इसी प्रकार पूर्ववत् क्रमशः तीन लेश्याएं अविशुद्ध और तीन विशुद्ध हैं, तीन अप्रशस्त हैं और तीन प्रशस्त हैं, तीन संक्लिष्ट हैं और तीन असंक्लिष्ट हैं, तीन शीत और रूक्ष स्पर्श वाली हैं और तीन उष्ण और स्निग्ध स्पर्श वाली हैं तथा तीन दुर्गतिगामिनी और तीन सुगतिगामिनी हैं।
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