Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अठारहवाँ कायस्थिति पद - इन्द्रिय द्वार
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के बराबर ही हो सकती है। इस तरह पांचों स्थावरों के पर्याप्तकों के लगातार होने वाले अनेकों भवों को मिलाकर भी एकेन्द्रिय पर्याप्तक की उत्कृष्ट कार्यस्थिति संख्यात हजारों वर्षों की ही होती है।
बेइंदियपज्जत्तए णं पुच्छा ?
गोयमा ! जहणणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखिज्जाई वासाई ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! बेइन्द्रिय-पर्याप्तक, बेइन्द्रिय- पर्याप्तक रूप में कितने काल तक रहता है ?
उत्तर - हे गौतम! बेइन्द्रिय-पर्याप्तक, बेइन्द्रिय- पर्याप्तक रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त तक और उत्कृष्ट संख्यात वर्षों तक रहता है।
विवेचन - बेइन्द्रिय पर्याप्तक के भी उत्कृष्ट स्थिति के लगातार आठ भव ही होते हैं । जघन्य मध्यम स्थिति के पर्याप्तक भव अनेकों हो सकते हैं । किन्तु वे भी आठ भवों की उत्कृष्ट स्थिति के . बराबर होने की ही संभावना है।
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तेइंदियपज्जत्तए पणं पुच्छा ?
गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखिज्जाई राइंदियाई ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! तेइन्द्रिय-पर्याप्तक, तेइन्द्रिय- पर्याप्तक रूप में कितने काल तक बना रहता है ?
उत्तर - हे गौतम! तेइन्द्रिय-पर्याप्तक, तेइन्द्रिय-पर्याप्तक रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त तक और उत्कृष्ट संख्यात रात्रि-दिन (अहोरात्र) तक रहता है।
विवेचन - तेइन्द्रिय की उत्कृष्ट भवस्थिति ४९ दिन होने से कितनेक निरंतर पर्याप्तक भवों के मिलाने से भी संख्यात दिवस ही होते हैं इसलिए तेइन्द्रिय की उत्कृष्ट कार्यस्थिति संख्यात रात्रि दिन की कही गयी है।
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चउरिदियपज्जत्तए णं भंते! पुच्छा ?
गोमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखिज्जा मासा ।
भावार्थ प्रश्न हे भगवन् ! चउरिन्द्रिय-पर्याप्तक, चउरिन्द्रिय-पर्याप्तक रूप में कितने काल तक रहता है ?
उत्तर - हे गौतम! चउरिन्द्रिय-पर्याप्तक, चउरिन्द्रिय- पर्याप्तक रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त तक और उत्कृष्ट संख्यात मास तक रहता है।
विवेचन - चउरिन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट भवस्थिति छह मास होने से कितनेक निरंतर पर्याप्तक
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