Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अठारहवाँ कायस्थिति पद - काय द्वार
२५१
विवेचन - यहाँ पर उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्षों में २२ हजार वर्षों से आठ गुणी स्थिति अर्थात् १७६००० (एक लाख छियत्तर हजार) वर्षों जितनी समझनी चाहिए।
एवं आऊ वि। भावार्थ - इसी प्रकार अप्कायिक पर्याप्तक के विषय में भी समझना चाहिए।
विवेचन - अप्कायिक पर्याप्तक जीवों की उत्कृष्ट संख्याता हजारों वर्षों की स्थिति में सात हजार वर्षों से आठ गुणी अर्थात् ५६ हजार वर्षों की समझनी चाहिए।
तेउकाइए पजत्तए णं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखिजाइं राइंदियाई।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! तेजस्कायिक पर्याप्तक कितने काल तक लगातार तेजस्कायिक पर्याप्तक बना रहता है?
... उत्तर - हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात रात्रि-दिन तक वह तेजस्कायिकपर्याप्तक रूप में बना रहता है।
विवेचन - यहाँ पर भी उत्कृष्ट स्थिति तीन अहोरात्रि के आठ गुणी अर्थात् २४ अहोरात्रि जितनी समझनी चाहिए।
वाउकाइयपज्जत्तए णं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं अंत मुहत्तं, उक्कोसेणं संखिजाइं वाससहस्साइं। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! वायुकायिक पर्याप्तक के विषय में भी इसी प्रकार की पृच्छा है ?
उत्तर - हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्षों तक वह वायुकायिक पर्याप्तक पर्याय में रहता है।
- विवेचन - यहाँ पर भी उत्कृष्ट स्थिति तीन हजार वर्षों से आठ गुणी अर्थात् चौबीस हजार वर्षों तक की समझनी चाहिए।
वणस्सइकाइय पज्जत्तए णं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखिजाइं वाससहस्साइं। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! वनस्पतिकायिक पर्याप्तक के विषय में भी पूर्ववत् प्रश्न है।
उत्तर - हे गौतम! वनस्पतिकायिक पर्याप्तक जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्षों तक वनस्पतिकायिक पर्याप्तक पर्याय में बना रहता है। ... विवेचन - यहाँ पर भी उत्कृष्ट स्थिति दस हजार वर्षों से आठ गुणी अर्थात् अस्सी हजार वर्षों की समझनी चाहिए।
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