Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सत्तरहवाँ लेश्या पद- चतुर्थ उद्देशक - अल्पबहुत्व द्वार
पएसट्टयाए अनंतगुणा, जहण्णया णीललेस्साठाणा पएसट्टयाए असंखिज गुणा, एवं जाव सुक्कलेस्साठाणा ॥ ५२५ ॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इन कृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या के जघन्य स्थानों में से द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से और द्रव्य तथा प्रदेशों की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ?
उत्तर - हे गौतम! द्रव्य की अपेक्षा से, सबसे थोड़े जघन्य कापोत लेश्या स्थान हैं, उनसे नील लेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यात गुणा हैं, उनसे कृष्ण लेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यात गुणा हैं, उनसे तेजोलेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यात गुणा हैं, उनसे पद्म लेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यात गुणा हैं, उनसे शुक्ल लेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यात गुणा हैं।
प्रदेशों की अपेक्षा से - सबसे थोड़े कापोत लेश्या के जघन्य स्थान हैं, उनसे नील लेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यात गुणा हैं, उनसे कृष्ण लेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यात गुणा हैं, उनसे तेजोलेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यात गुणा हैं, उनसे पद्म लेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यात गुणा हैं, उनसे शुक्लेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यात गुणा हैं।
द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से सबसे कम कापोत लेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से हैं, उनसे नील लेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यात गुणा हैं, उनसे जघन्य कृष्ण लेश्या स्थान, तेजोलेश्या स्थान, पद्म लेश्या स्थान तथा इसी प्रकार शुक्ल लेश्या स्थान द्रव्य की अपेक्षा से क्रमशः असंख्यात गुणा हैं। द्रव्य की अपेक्षा से शुक्ल लेश्या के जघन्य स्थानों से, कापोत लेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्त गुणा हैं, उनसे नील लेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यात गुणा हैं, इसी प्रकार कृष्ण लेश्या, तेजोलेश्या, पद्म लेश्या एवं शुक्ल लेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से उत्तरोत्तर असंख्यात गुणा हैं।
एएसि णं भंते! कण्हलेस्साठाणाणं जाव सुक्कलेस्साठाणाण य उक्कोसगाणं दव्वट्टयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठपएसट्टयाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
२२३
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गोयमा! सव्वत्थोवा उक्कोसगा काउलेस्साठाणा दव्वट्टयाए, उक्कोसगा णीललेस्साठाणा दव्वट्टयाए असंखिज्जगुणा, एवं जहेव जहण्णगा तहेव उक्कोसगा वि, णवरं उक्कोस त्ति अभिलावो ॥ ५२६ ॥
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