Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
गोयमा! चत्तारि, तंजहा-कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! हेमवत और ऐरण्यवत अकर्मभूमिज मनुष्यों और मनुष्यस्त्रियों में कितनी लेश्याएँ होती हैं?
उत्तर - हे गौतम! इन दोनों क्षेत्रों के अकर्मभूमिज मनुष्यों और मनुष्य स्त्रियों में चार लेश्याएँ होती हैं। वे इस प्रकार हैं - कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या।
हरिवास रम्मय अकम्मभूमय मणुस्साणं मणुस्सीण य पुच्छा? गोयमा! चत्तारि, तंजहा - कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! हरिवर्ष और रम्यकवर्ष के अकर्मभूमिज मनुष्यों और मनुष्यस्त्रियों में कितनी लेश्याएँ होती हैं? .
उत्तर - हे गौतम! इन दोनों क्षेत्रों के अकर्मभूमिज पुरुषों और स्त्रियों में चार लेश्याएं होती हैं। वे इस प्रकार हैं - कृष्ण लेश्या यावत् तेजोलेश्या।
देवकुरु उत्तरकुरु अकम्मभूमय मणुस्सा एवं चेव।
भावार्थ - देवकुरु और उत्तरकुरु क्षेत्र के अकर्मभूमिज मनुष्यों में भी इसी प्रकार चार लेश्याएं जाननी चाहिए।
एएसिं चेव मणुस्सीणं एवं चेव।
भावार्थ - इन पूर्वोक्त दोनों क्षेत्रों की मनुष्यस्त्रियों में भी इसी प्रकार चार लेश्याएँ समझनी चाहिए।
धायइसंड पुरिमद्धे वि एवं चेव, पच्छिमद्धे वि, एवं पुक्खरद्धे वि भाणियव्वं ॥५३०॥
भावार्थ - धातकीखण्ड के पूर्वार्द्ध में तथा पश्चिमार्द्ध में भी मनुष्यों और मनुष्यस्त्रियों में इसी प्रकार चार लेश्याएँ कहनी चाहिए। इसी प्रकार पुष्करार्द्ध द्वीप में भी कहना चाहिए।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में कर्मभूमिज और अकर्मभूमिज मनुष्यों और उनकी स्त्रियों में कितनी लेश्याएं पाई जाती है, इसका कथन किया गया है कर्मभूमिज मनुष्यों और स्त्रियों में छह लेश्याएं तथा अकर्मभूमिज मनुष्यों और स्त्रियों में पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या को छोड़ कर शेष चार लेश्याएं पाई जाती हैं।
लेश्या की अपेक्षा गर्भोत्पत्ति कण्हलेस्से णं भंते! मणुस्से कण्हलेसं गब्भं जणेजा?
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