Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अट्ठारसमं कार्यट्टिइपयं
अठारहवाँ कायस्थिति पद
सतरहवें लेश्या पद में लेश्या परिणाम का कथन किया गया है। परिणाम की समानता से इस अठारहवें पद में कायस्थिति परिणाम का कथन किया जाता है। जिसमें विषय प्रतिपादक दो संगृहणी गाथाएं इस प्रकार हैं -
कायस्थिति पद के २२ द्वार
जीव गइंदिय का जोए वेए कसाय लेस्सा य । सम्मत्त णाण दंसण संजय उवओग आहारे ॥ १ ॥ भासग परित्त पज्जत्त सुहुम सण्णी भवत्थि चरिमे य । एएसिं तु पयाणं कायठिई होइ णायव्वा ॥ २ ॥
. भावार्थ - १. जीव २. गति ३. इन्द्रिय ४. काय ५. योग ६. वेद ७. कषाय ८. लेश्या ९. सम्यक्त्व १०. ज्ञान ११. दर्शन १२. संयत १३. उपयोग १४. आहार १५. भाषक १६. परित्त १७. पर्याप्त १८. सूक्ष्म १९. संज्ञी २०. भव ( सिद्धिक) २१. अस्ति (काय) और २२. चरम, इन पदों की कायस्थिति जाननी चाहिए।
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विवेचन- यहाँ काय का अर्थ है पर्याय । पर्याय सामान्य विशेष के भेद से दो प्रकार की है। जीव की जीवत्व रूप पर्यायं सामान्य है और नरक तिर्यंच आदि रूप पर्याय विशेष पर्याय है। सामान्य अथवा विशेष पर्याय की अपेक्षा जीव का निरन्तर होना कायस्थिति है । काय स्थिति और भव स्थिति में अंतर इस प्रकार है
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प्रश्न - काय स्थिति किसे कहते हैं ?
उत्तर - किसी एक ही काय (निकाय) में मर कर पुनः उसी में जन्म ग्रहण करने की स्थिति को काय स्थिति कहते हैं । जैसे पृथ्वीकाय आदि के जीवों का पृथ्वीकाय आदि से चव कर पुनः पृथ्वीकाय आदि में ही उत्पन्न होना ।
प्रश्न - भव स्थिति किसे कहते हैं ?
उत्तर- जिस भव में जीव उत्पन्न होता है उसके उसी भव की स्थिति को भव स्थिति कहते हैं । मनुष्य और पंचेन्द्रिय तिर्यंच लगातार सात आठ जन्मों तक मनुष्य और पंचेन्द्रिय तिर्यंच हो सकते
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