Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सत्तरहवाँ लेश्या पद-छठा उद्देशक - मनुष्यों में लेश्याएं
२३३
गोयमा! छल्लेस्साओ पण्णत्ताओ। तंजहा-कण्हा जाव सुक्का।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! भरत क्षेत्र और ऐरवत क्षेत्र के मनुष्यों में कितनी लेश्याएं पाई जाती हैं?
उत्तर - हे गौतम! भरत क्षेत्र और ऐरवत क्षेत्र के मनुष्यों में छह ही लेश्याएँ होती हैं। यथा - कृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या।
एवं मणुस्सीण वि। भावार्थ - इसी प्रकार इन क्षेत्रों की मनुष्यस्त्रियों में भी छह लेश्याओं की प्ररूपणा करनी चाहिए। पुव्वविदेह अवरविदेहे कम्म भूमय मणुस्साणं कइ लेस्साओ पण्णत्ताओ? गोयमा! छल्लेस्साओ पण्णत्ताओ। तंजहा - कण्हा जाव सुक्का।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पूर्वविदेह और अपरविदेह के कर्मभूमिज मनुष्यों में कितनी लेश्याएं होती हैं?
उत्तर - हे गौतम! पूर्वविदेह और अपरविदेह के कर्मभूमिज मनुष्यों में छह लेश्याएँ कही गई हैंकृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या।
एवं मणुस्सीण वि। • भावार्थ - इसी प्रकार इन दोनों क्षेत्रों की मनुष्यस्त्रियों में भी छह लेश्याएं समझनी चाहिए।
अकम्म भूमय मणुस्साणं पुच्छा? गोयमा! चत्तारि लेस्साओ पण्णत्ताओ। तंजहा - कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! अकर्मभूमिज मनुष्यों में कितनी लेश्याएं कही गई हैं ?
उत्तर - हे गौतम! अकर्मभूमिज मनुष्यों में चार लेश्याएँ कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं - कृष्ण लेश्या यावत् तेजो लेश्या।।
एवं अकम्मभूमय मणुस्सीण वि। भावार्थ - इसी प्रकार अकर्मभूमिज मनुष्यस्त्रियों में भी चार लेश्याएँ कहनी चाहिए। • एवं अंतरदीवग मणुस्साणं, मणुस्सीण वि। .. भावार्थ - इसी प्रकार अन्तरद्वीपज मनुष्यों में और मनुष्यस्त्रियों में भी चार लेश्याएँ समझनी
चाहिए।
हेमवय एरण्णवय अकम्मभूमय मणुस्साणं मणुस्सीण य कइ लेस्साओ पण्णत्ताओ?
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