Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
विवेचन - कृष्ण लेश्या, नील लेश्या और कापोत लेश्या, ये तीन लेश्याएं क्रमशः अविशुद्ध, अप्रशस्त, संक्लिष्ट, शीत और रूक्ष स्पर्श वाली तथा दुर्गति में ले जाने वाली होती है। तेजो लेश्या, पद्म लेश्या, शुक्ल लेश्या, ये तीन लेश्याएं विशुद्ध, प्रशस्त, असंक्लिष्ट, उष्ण और स्निग्ध स्पर्शवाली तथा सुगति में ले जाने वाली होती है।
१०. परिणाम द्वार कण्हलेस्सा णं भंते! कइविहं परिणामं परिणमइ?
गोयमा! तिविहं वा णवविहं वा सत्तावीसविहं वा एक्कासीइविहं वा बेतेयालीसतविहं वा बहुयं वा बहुविहं वा परिणामं परिणमइ, एवं जाव सुक्कलेस्सा ॥५२२॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! कृष्ण लेश्या कितने प्रकार के परिणाम में परिणत होती है ?
उत्तर - हे गौतम! कृष्ण लेश्या तीन प्रकार के, नौ प्रकार के, सत्ताईस प्रकार के, इक्यासी प्रकार के या दो सौ तेतालीस प्रकार के अथवा बहुत-से या बहुत प्रकार के परिणाम में परिणत होती है। कृष्ण लेश्या के परिणामों के कथन की तरह नील लेश्या से लेकर शुक्ल लेश्या तक के परिणामों का भी कथन करना चाहिए।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में लेश्याओं का परिणाम बतलाया गया है। प्रत्येक लेश्या के जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट ऐसे तीन भेद होते हैं। इन तीन भेदों में भी अपने अपने स्थानों में जब तरतमता का विचार किया जाता है तब यह जघन्य आदि प्रत्येक भी अपने अपने में जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट भेद वाले हो जाते हैं। इस प्रकार तीन को तीन से गुणा करने पर ९ भेद हो जाते हैं। इन नौ में फिर जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट के भेद करने पर २७ भेद हो जाते हैं। इन २७ को फिर जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट तीन से गुणा करने पर ८१ भेद हो जाते हैं और इन ८१ को फिर इन जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट से गुणा करने पर २४३ भेद हो जाते हैं। इस प्रकार प्रत्येक लेश्या के परिणाम बहुत भेदों वाले हो जाते हैं।
११. प्रदेश द्वार कण्हलेस्सा णं भंते! कइपएसिया पण्णत्ता? गोयमा! अणंतपएसिया पण्णत्ता, एवं जाव सुक्कलेस्सा। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! कृष्ण लेश्या कितने प्रदेश वाली कही गयी है? उत्तर - हे गौतम! कृष्ण लेश्या अनन्त प्रदेशों वाली कही गयी है क्योंकि कृष्ण लेश्या योग्य
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