Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सत्तरहवां लेश्या पद-चतुर्थ उद्देशक - रस द्वार
उत्तर - हे गौतम! जैसे कोई नीम हो, नीम का सार हो, नीम की छाल हो, नीम का क्वाथ (काढ़ा) हो, अथवा कुटज हो, या कुटज का फल हो, अथवा कुटज की छाल हो या कुटज का क्वाथ (काढ़ा) हो, अथवा कड़वी तुम्बी हो, या कड़वा तुम्बा हो, कड़वी ककड़ी (त्रपुषी) हो, या कड़वी ककड़ी का फल हो, अथवा देवदाली (रोहिणी) हो या देवदाली का पुष्प हो, या मृगवालुंकी हो अथवा मृगवालुंकी का फल हो, या कड़वी घोषातिकी हो, अथवा कड़वी घोषातिकी (तुराई) का फल हो या कृष्णकन्द हो अथवा वज्रकन्द हो, इन वनस्पतियों के कटु रस के समान कृष्ण लेश्या का रस कहा गया है।
प्रश्न - हे भगवन् ! क्या कृष्ण लेश्या रस से इसी रूप की होती है ?
उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है । कृष्ण लेश्या स्वाद में इन से भी अनिष्टतर, अधिक अकान्त, अधिक अप्रिय, अधिक अमनोज्ञ और अतिशय अमनाम है।
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णीललेस्साए पुच्छा ?
गोयमा ! से जहाणामए भंगी इ वा भंगीरए इ वा पाढा इ वा चविया इ वा चित्तामूलए इ वा पिप्पली इ वा पिप्पलीमूलए इ वा पिप्पलीचुण्णे इ वा मिरिए इ वा मिरियचुण्णए इ वा सिंगबेरे इ वा सिंगबेरचुण्णे इ वा ।
भवेयारूवा ?
गोयमा ! णो इणट्टे समट्ठे, णीललेस्सा णं एत्तो जाव अमणामतरिया चेव आसाएणं पण्णत्ता ॥ ५९६ ॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नील लेश्या आस्वाद में कैसी है ?
उत्तर - हे गौतम! जैसे कोई भृंगी (एक प्रकार की मादक वनस्पति) हो, अथवा भृंगी का कण (रज) हो, या पाठा नामक वनस्पति हो या चविता हो अथवा चित्रमूलक वनस्पति हो, या पिप्पलीमूल (पीपरामूल) हो, या पीपल हो, अथवा पीपल का चूर्ण हो, मिर्च हो या मिर्च का चूरा हो, श्रृंगबेर (अदरक) हो या श्रृंगबेर का चूर्ण हो, इन सबके रस के समान नील लेश्या का रस कहा गया है।
प्रश्न - हे भगवन् ! क्या नील लेश्या रस से इसी प्रकार की होती है ?
उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। नील लेश्या रस में इससे भी अनिष्टतर, अधिक अकान्त, अधिक अप्रिय, अधिक अमनोज्ञ और अत्यधिक अमनाम कही गयी है।
काउलेस्साए पुच्छा ?
गोयमा! से जहाणामए अंबाण वा अंबाडगाण वा माउलुंगाण वा बिल्लाण वा विट्ठाण वा भद्दा ( भट्टाण, भच्चाण) वा फणसाण वा दाडिमाण वा पारेवयाण
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