Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
सत्तरहवाँ लेश्या पद- चतुर्थ उद्देशक - वर्ण द्वार
हल्दी हो, हल्दी की गुटिका (गोली) हो, हल्दी का खण्ड (टुकडा) हो, हरताल हो, हरताल की गुटिका (गोली) हो, हरताल का टुकड़ा हो, चिकुर नामक पीत वस्तु हो, चिकुर का रंग हो, या स्वर्ण की शक्ति हो, उत्तम स्वर्ण-निकष (कसौटी पर खींची हुई स्वर्णरेखा) हो, श्रेष्ठ पुरुष (वासुदेव) का पीताम्बर हो, अल्लकी का फूल हो, चम्पा का फूल हो, कनेर का फूल हो, कूष्माण्ड (कोले) की लता का पुष्प हो, स्वर्णयूथिका (जूही) का फूल हो, सुहिरण्यिका- कुसुम हो, कोरंट के फूलों की माला हो, पीत - पीला अशोक हो, पीला कनेर हो, अथवा पीला बन्धुजीवक हो, इनके समान पद्म लेश्या पीले वर्ण की कही गई है।
प्रश्न - हे भगवन् ! क्या पद्म लेश्या वास्तव में ही इसी रूप वाली होती है ?
उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है । पद्म लेश्या वर्ण में इनसे भी इष्टतर, यावत् अधिक मनाम ( वांछनीय) होती है ।
सुक्कलेस्सा णं भंते! केरिसिया वण्णेणं पण्णत्ता ?
• गोयमा ! से जहाणामए अंके इ वा संखे इ वा चंदे इ वा कुंदे इ वा दंगे इ वा दगरए इ वा दही इ वा दहिघणे इ वा खीरे इ वा खीरपूरए इ वा सुक्कच्छिवाडिया इ वाहुमंजिया इ वा धंतधोयरुप्पपट्टे इ वा सारयबलाहए इ वा कुमुयदले इ वा पोंडरीयदले इ वा सालिपिट्ठरासी इ वा कुडगपुप्फरासी इ वा सिंदुवारमल्लदामे इ वा सेयासोए इ वा सेयकणवीरे इ वा सेयबंधुजीवए इ वा ।
भवेयारूवे ?
२१३
गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे । सुक्कलेस्सा णं एत्तो इट्ठतरिया चेव जाव मणामतरिया चेव वण्णेणं पण्णत्ता ॥ ५१३ ॥
भावार्थ- प्रश्न हे भगवन्! शुक्ल लेश्या वर्ण से कैसी होती है ?
-
उत्तर - हे गौतम! जैसे कोई अंकरन हो, शंख हो, चन्द्रमा हो, कुन्द (पुष्प) हो, उदक ( स्वच्छ जल) हो, जलकण हो, दही हो, जमा हुआ दही (दधिपिण्ड) हो, दूध हो, दूध का उफान हो, सूखी फली हो, मयूरपिच्छ की मिंजी हो, तपा कर धोया हुआ चांदी का पट्ट हो, शरदऋतु का बादल हो, कुमुद का पत्र हो, पुण्डरीक कमल का पत्र हो, चावलों (शालिधान्य) के आटे का पिण्ड (राशि) हो, कुटज के पुष्पों की राशि हो, सिन्धुवार के श्रेष्ठ फूलों की माला हो, श्वेत अशोक हो, श्वेत कनेर हो, अथवा श्वेत बन्धुजीवक हो, इनके समान शुक्ल लेश्या श्वेत वर्ण की कही गई है।
प्रश्न - हे भगवन् ! क्या शुक्ल लेश्या वास्तव में ऐसे ही रूप वाली होती है ?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jalnelibrary.org