Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सत्तरहवाँ लेश्या पद-चतुर्थ उद्देशक - वर्ण द्वार
को पाकर नील लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या रूप में एवं उन-उन लेश्याओं के वर्ण, गंध, रस, स्पर्श रूप में बार-बार परिणत होती है। जैसे वैडूर्यमणि कृष्ण, नील, रक्त, पीत और श्वेत वर्ण के सूत्र (धागे) का संयोग पाकर कृष्ण, नील, रक्त, पीत और श्वेत वर्ण का हो जाता है। कृष्ण लेश्या की तरह शेष लेश्याएं भी अपने से भिन्न पांच लेश्याओं को पाकर उन-उन लेश्याओं के रूप में एवं उनके वर्ण गंध रस और स्पर्श रूप में बार-बार परिणत हो जाती है।
२. वर्ण द्वार
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किण्हलेस्सा णं भंते! वण्णेणं केरिसिया पण्णत्ता ?
गोयमा ! से जहाणामए जीमूए इ वा अंजणे इ वा खंजणे इ वा कज्जले इ वा गवले इ वा गवलवलए इ वा जंबूफले इ वा अद्दारिट्ठपुप्फे इ वा परपुट्ठे इ वा भमरे इ वा भमरावली इ वा गयकलभे इ वा किण्हकेसे इ वा आगासथिग्गले इ वा किण्हासोए इ वा किंण्हकणवीरए इ वा किण्हबंधुजीवए इ वा ।
भवे एयारूवे ?
गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे, किण्हलेस्सा णं इत्तो अणिट्ठतरिया चेव अकंततरिया चेव अप्पियतरिया चेव अमणुण्णतरिया चेव अमणामतरिया चेव वण्णेणं पण्णत्ता ॥ ५०८ ॥
कठिन शब्दार्थ - जीमूए - जीमूत-वर्षा ऋतु के प्रारंभ काल का जल से भरा मेघ, अंजणे - अंजन- आँखों में आंजने का सौवीर अंजन, काला सुरमा या अंजन नामक रत्न विशेष, खंजणे - खंजन - दीपक - दीवट, के लगा मैल या गाडी की धुरी में लगा हुआ कीट-औंघन, गवले - गवल - भैंस का सिंग, गवलवलए - गवलवलय-भैंस के सींगों का समूह, अद्दारिट्ठपुप्फेअरीठा या अरीठे का फूल, परपुट्ठे परपुष्ट- कोयल, भमरावली भ्रमरों की पंक्ति, अणिट्ठतरिया अनिष्टतर, अकंततरिया - अकांततर-अधिक अकांत - असुंदर, अप्पियतरिया - अप्रियतरिका, अमणुण्णतरिया अमणामतरिया - अमनामतर- अत्यधिक अवांछनीय।
अमनोज्ञतर
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भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! कृष्ण लेश्या वर्ण से कैसी होती है ?
उत्तर- हे गौतम! जैसे कोई जीमूत (वर्षारम्भकालिक मेघ) हो, अंजन हो, खंजन - गाडी की धुरी में लगा हुआ औघन या दीवट के लगा मैल हो, काजल हो, गवल (भैंस का सींग) हो गवलवलय (भैंस के सींगों का समूह ) हो, जामुन का फल हो, या अरीठे का फूल हो, कोयल हो, भ्रमर हो, भ्रमरों की पंक्ति हो, हाथी का बच्चा हो, काले केश हों, आकाशथिग्गल (शरदऋत के मेघों के बीच का
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