Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१९२
प्रज्ञापना सूत्र
उत्पन्न होता है ? कृष्ण लेश्या वाला ही नैरयिकों में से उद्वृत्तन होता है ? अर्थात् - जिस लेश्या वाला होकर उत्पन्न होता है, उसी लेश्या वाला होकर उद्वर्त्तन (मरण प्राप्त) करता है ?
उत्तर - हाँ, गौतम ! कृष्ण लेश्या वाला नैरयिक कृष्ण लेश्या वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है, कृष्ण लेश्या वाला होकर ही वहाँ से उद्वृत्त होता है। जिस लेश्या वाला होकर उत्पन्न होता है, उसी लेश्या वाला होकर उद्वर्तन करता है ।
L
एवं णीललेस्से वि, एवं काउलेस्से वि ।
भावार्थ - इसी प्रकार नील लेश्या वाले और कापोत लेश्या वाले नैरयिक के उत्पाद और उद्वर्तन के सम्बन्ध में भी समझ लेना चाहिए।
एवं असुरकुमाराण- वि जाव थणियकुमारा, णवरं तेउलेस्सा अब्भहिया ।
भावार्थ - असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक भी इसी प्रकार से उत्पाद और उद्वर्त्तन का कथन करना चाहिए। विशेषता यह है कि इनके सम्बन्ध में तेजो लेश्या का कथन अधिक करना
.
चाहिए।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में नैरयिकों और देवों में लेश्या की अपेक्षा से उत्पाद एवं उद्वर्तन की प्ररूपणा की गई है । नैरयिकों और देवों में जीव जिस लेश्या वाला होता है वह उसी लेश्या वालों में उत्पन्न होता है तथा उसी लेश्या वाला होकर वहाँ से निकलता (मरता ) है 1 जैसे - कृष्ण लेश्या वाला नैरयिक कृष्ण लेश्या वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है और जब उद्वर्त्तन करता है तब कृष्ण लेश्या वाला होकर ही उद्वर्त्तन करता है, अन्य लेश्या वाला होकर नहीं। इसका कारण यह है कि तिर्यंच पंचेन्द्रिय या मनुष्य, तिर्यंच पंचेन्द्रिय आयु या मनुष्यायु के पूरी तरह क्षय होने से अंतर्मुहूर्त्त पहले उसी लेश्या वाला हो जाता है जिस लेश्या वाले नैरयिक में वह उत्पन्न होने वाला है तत्पश्चात् ही वह अप्रतिपतित परिणाम से उस नरकायु का वेदन करता है । इसीलिये कहा है कि कृष्ण लेश्या वाला नैरयिक कृष्ण लेश्या वाले नैरयिकों में ही उत्पन्न होता है, अन्य लेश्या वाले नैरयिकों में नहीं। नैरयिक भव का क्षय होने तक वह कृष्ण लेश्या वाला ही बना रहता है, उसकी लेश्या बदलती नहीं, क्योंकि नैरयिकों और देवों में ऐसा ही नियम है। कृष्ण लेश्या की तरह ही अन्य लेश्या वाले नैरयिकों एवं देवों का उत्पाद व उद्वर्त्तन समझ लेना चाहिए। अंतर इतना है कि नैरयिकों में तीन लेश्या (कृष्ण, नील, कापोत) होती है जबकि असुरकुमार आदि देवों में तेजोलेश्या सहित चार लेश्याएं कहनी चाहिए । क्योंकि उनमें तेजोलेश्या भी होती हैं।
Jain Education International
यहाँ पर नैरयिक एवं देवों में पूरे भव तक एक ही प्रकार की (कृष्ण, नील, कापोत एवं तेजोलेश्या में से अपने अपने प्रायोग्य कोई भी एक) लेश्या का रहना बताया है। उसका आशय -
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org