Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
सत्तरहवाँ लेश्या पद-द्वितीय उद्देशक - सलेशी ऋद्धिक जीवों का अल्पबहुत्व
१८७
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! कृष्ण लेश्या वाले से लेकर शुक्ल लेश्या वाले तक के भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों और देवियों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं?
उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े शुक्ल लेश्या वाले वैमानिक देव हैं, उनसे पद्म लेश्या वाले वैमानिक देव असंख्यात गुणा हैं, उनसे तेजो लेश्या वाले वैमानिक देव असंख्यात गुणा हैं, उनसे तेजो लेश्या वाली वैमानिक देवियाँ संख्यात गुणी हैं, उनसे तेजो लेश्या वाले भवनवासी देव असंख्यात गुणा हैं, उनसे तेजो लेश्या वाली भवनवासी देवियाँ संख्यात गुणी हैं, उनसे कापोत लेश्या वाले भवनवासी देव असंख्यात गुणा हैं, उनसे नील लेश्या वाले भवनवासी देव विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्ण लेश्या वाले भवनवासी देव विशेषाधिक हैं, उनसे कापोत लेश्या वाली भवनवासी देवियाँ संख्यात गुणी हैं, उनसे नील लेश्या वाली भवनवासी देवियाँ विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्ण लेश्या वाली भवनवासी देवियाँ विशेषाधिक हैं, उनसे तेजो लेश्या वाले वाणव्यन्तर देव असंख्यात गुणा हैं, उनसे तेजो लेश्या वाली वाणव्यन्तर देवियाँ संख्यातगुणी हैं, उनसे कापोत लेश्या वाले वाणव्यन्तर देव असंख्यात गुणा हैं, उनसे नील लेश्या वाले वाणव्यन्तर देव विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्ण लेश्या वाले वाणव्यन्तर देव विशेषाधिक हैं, उनसे कापोत लेश्या वाली वाणव्यन्तर देवियाँ संख्यातगुणी हैं, उनसे नील लेश्या वाली वाणव्यन्तर देवियाँ विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्ण लेश्या वाली वाणव्यन्तर देवियाँ विशेषाधिक हैं, उनसे तेजो लेश्या वाले ज्योतिषी देव संख्यात गुणा हैं, उनसे तेजो लेश्या वाली ज्योतिषी देवियाँ संख्यात गुणी हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में चारों निकायों के देव और देवियों का कृष्ण आदि लेश्याओं की अपेक्षा शामिल अल्पबहुत्व कहा गया है।
सलेशी ऋद्धिक जीवों का अल्पबहुत्व एएसि णं भंते! जीवाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कयरे कयरेहितो अप्पड्डिया वा महड्डिया वा? ____ गोयमा! कण्हलेस्सेहिंतो णीललेस्सा महड्डिया, णीललेस्सेहिंतो काउलेस्सा महड्डिया, एवं काउलेस्सेहिंतो तेउलेस्सा महड्डिया, तेउलेस्सेहितो पम्हलेस्सा महड्डिया, पम्हलेस्सेहितो सुक्कलेस्सा महड्डिया, सव्वप्पड्डिया जीवा कण्हलेस्सा, सव्वमहड्डिया सुक्कलेस्सा ॥ ४९७॥
कठिन शब्दार्थ - अप्पड्डिया - अल्प ऋद्धि वाले, महड्डिया - महर्द्धिक-महान् ऋद्धि वाले।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इन कृष्ण लेश्या वाले, यावत् शुक्ल लेश्या वाले जीवों में से कौन, किनसे अल्प ऋद्धि वाले अथवा महती ऋद्धि वाले हैं ?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org