Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१८२
प्रज्ञापना सूत्र
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इन कृष्ण लेश्या वाली यावत् तेजो लेश्या वाली भवनवासी देवियों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
उत्तर - हे गौतम! जैसे कृष्ण लेश्या वाले से लेकर तेजोलेश्या पर्यन्त भवनवासी देवों का अल्पबहुत्व कहा है। उसी प्रकार उनकी देवियों का भी अल्पबहुत्व कहना चाहिए।
एएसि णं भंते! भवणवासीणं देवाणं देवीण य कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा भवणवासी देवा तेउलेस्सा, भवणवासिणीओ तेउलेस्साओ संखिज्जगुणाओ, काउलेस्सा भवणवासी देवा असंखिज्जगुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, काउलेस्साओ भवणवासिणीओ देवीओ संखिज्जगुणाओ, णीललेस्साओ विसेसाहियाओ, कण्हलेस्साओ विसेसाहियाओ ।
भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन्! इन कृष्ण लेश्या, यावत् तेजी लेश्या वाले भवनवासी देवों और देवियों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं।
उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े तेजो लेश्या वाले भवनवासी देव हैं, उनसे तेजोलेश्या वाली भवनवासी देवियाँ संख्यात गुणी हैं, उनसे कापोत लेश्या वाले भवनवासी देव असंख्यात गुणा हैं, उनसे नील लेश्या वाले भवनवासी देव विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्ण लेश्या वाले भवनवासी देव विशेषाधिक हैं, उनसे कापोत लेश्या वाली भवनवासी देवियाँ संख्यातगुणी हैं, उनसे नील लेश्या वाली भवनवासी देवियाँ विशेषाधिक हैं और उनसे भी कृष्ण लेश्या वाली भवनवासी देवियाँ विशेषाधिक हैं।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में कृष्ण लेश्या आदि वाले भवनपति देवों और देवियों का शामिल. अल्पबहुत्व कहा गया है। सामान्य रूप से देवों की अपेक्षा देवियाँ प्रत्येक निकाय में लगभग बत्तीस गुणी होती हैं अतः देवों से देवियाँ संख्यात गुणी घटित होती है ।
एवं वाणमंतराणं वि तिण्णेव अप्पाबहुया जहेव भवणवासीणं तहेव भाणियव्वा
॥ ४९२ ॥
भावार्थ - भवनवासी देव - देवियों का अल्पबहुत्व कहा है, इसी प्रकार वाणव्यन्तरों के तीनों ही (देवों, देवियों और देव-देवियों का सम्मिलित) प्रकारों का अल्प बहुत्व कहना चाहिए ।
एएसि णं भंते! जोइसियाणं देवाणं देवीण य तेउलेस्साण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
गोयमा! सव्वत्थोवा जोइसिया देवा तेउलेस्सा, जोइसिणीओ देवीओ तेउलेस्साओ संखिज्जगुणाओ ॥ ४९३ ॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org