Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पन्द्रहवां इन्द्रिय पद-द्वितीय उद्देशक - बारहवां भावेन्द्रिय द्वार
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होंगी। सर्वार्थसिद्ध के बहुत देवों ने चार अनुत्तर विमान और संज्ञी मनुष्य के सिवाय शेष सभी स्थानों की अपेक्षा द्रव्येन्द्रियां अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में नहीं होंगी। सर्वार्थसिद्ध के बहुत देवों ने संज्ञी मनुष्य रूप में द्रव्येन्द्रियाँ अतीतकाल में अनन्त की, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में संख्यात होंगी।
बारहवाँ भावेन्द्रिय द्वार कइणं भंते! भाविंदिया पण्णत्ता? गोयमा! पंच भाविंदिया पण्णत्ता। तंजहा - सोइंदिए जाव फासिदिए। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! भावेन्द्रियाँ कितनी कही गई हैं?
उत्तर - हे गौतम! भावेन्द्रियाँ पांच कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं - श्रोत्रेन्द्रिय से लेकर स्पर्शनेन्द्रिय तक।
णेरइयाणं भंते! कइ भाविंदिया पण्णता?
गोयमा! पंच भाविंदिया पण्णत्ता। तंजहा - सोइंदिए जाव फासिदिए। एवं जस्स जाईदिया तस्स तइ भाणियव्वा जाव वेमाणियाणं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् । नैरयिकों की कितनी भावेन्द्रियों कही गई है?
उत्तर- हे गौतम। नैरयिकों की भावेन्द्रियाँ पांच कहीं गई है, वेइस प्रकार हैं - श्रोत्रेन्द्रिय से स्पर्शनेन्द्रिय तक। इसी प्रकार जिसकी जितनी इन्द्रियाँ हों, उतनी वैमानिकों तक भावेन्द्रियों कह देनी चाहिए। - विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में चौबीस ही दण्डक के जीलों की भावेन्द्रियों का कथन किया गया है।
शब्द आदि पांच विषयों के ज्ञान कराने वाली लब्धि (क्षयोपशम) एवं उपयोग रूप आत्मचेतना को भावेन्द्रिय कहते है। भावेन्द्रियाँ आत्म परिणाम रूप होने से अरूपी बताई गई है।
भाव इन्द्रियाँ पांच है - श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुन्त्रिप, प्राणेन्द्रिप, रसनेन्द्रिप और स्पर्शनेन्द्रिय । नारकी के नैरपिक, बस भवनपति, वाणष्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक इन चौवह बण्डक में तथा तिपंच पंचेन्द्रिय और मनुष्य में ये पांचों इन्द्रियाँ होती है। पांच स्थावर में एक स्वनिनिष, बेइन्विष में दो-स्पर्शनेन्द्रिय और रसनेन्द्रिय, तेइन्द्रिय में तीन-स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और घ्राणेन्द्रिय तथा चउरिन्द्रिय में चार इन्द्रियाँ-स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय और चक्षु इन्द्रिय होती हैं।
एगमेगस्स णं भंते! णेरइयस्स केवइया भाविंदिया अतीता? गोयमा! अणंता। भावार्थ-प्रश्न-हे भगवन् ! एक-एक नैरयिक के कितनी भावेन्द्रियाँ अतीत (भूतकाल) में हुई हैं ?
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