Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
है। क्योंकि पुरुष की इच्छा पर छाया का अनुगमन होता है। पुरुष के पीछे मुडते ही आगे की छाया पीछे की तरफ हो जाती है।
से किं तं लेस्सा गई?
लेस्सा गई जण्णं किण्हलेसा णीललेसं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुजो भुजो परिणमइ, एवं णीललेसा काउलेसं पप्प तारूवत्ताए जाव ताफासत्ताए परिणमइ, एवं काउलेसा वि तेउलेसं, तेउलेसा वि पम्हलेसं, पम्हलेसा वि सुक्कलेसं पप्प तारूवत्ताए जाव परिणमइ, से तं लेस्सा गई ११।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! लेश्यागति का क्या स्वरूप है?
उत्तर - हे गौतम! कृष्णलेश्या नीललेश्या को प्राप्त होकर उसी के वर्ण रूप में, उसी के गन्धं रूप में उसी के रस रूप में तथा उसी के स्पर्श रूप में बार-बार जो परिणत होती है, इसी प्रकार नीललेश्या भी कापोतलेश्या को प्राप्त होकर उसी के वर्ण रूप में यावत् उसी के स्पर्श रूप में जो परिणत होती है, उसी प्रकार कापोतलेश्या भी तेजोलेश्या को, तेजोलेश्या पद्मलेश्या को तथा पद्मलेश्या शुक्ललेश्या को प्राप्त होकर जो उसी के वर्ण रूप में यावत् उसी के स्पर्श रूप में परिणत होती है, वह लेश्या गति है। यह लेश्या गति का स्वरूप है।
से किं तं लेसाणुवाय गई? ..
लेसाणुवाय गई जल्लेसाई दव्वाइं परियाइत्ता कालं करेइ तल्लेसेसु उववजइ, तंजहा-किण्हलेसेसु वा जाव सुक्कलेसेसुवा, से तं लेसाणुवाय गई १२।।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! लेश्यानुपात गति किसे कहते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! जिस लेश्या के द्रव्यों को ग्रहण करके जीव काल करता है, उसी लेश्या वाले जीवों में उत्पन्न होता है। जैसे - कृष्णलेश्या वाले यावत् शुक्ललेश्या वाले द्रव्यों में इस प्रकार की गति लेश्यानुपात गति कहलाती है। यह लेश्यानुपात गति का निरूपण हुआ। .
से किं तं उहिस्सपविभत्त गई?
उहिस्सपविभत्त गई जण्णं आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं वा पवत्तिं वा गणिं वा गणहरं वा गणावच्छेइयं वा उद्दिसिय उद्दिसिय गच्छइ, से तं उद्दिस्सियपविभत्त गई १३।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उद्दिश्यप्रविभक्त गति का क्या स्वरूप है ?.
उत्तर - हे गौतम! आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, प्रवर्तक, गणि, गणधर अथवा गणावच्छेदक को उद्देश्य करके जो गमन किया जाता है, वह उद्दिश्यप्रविभक्त गति कहलाती है। यह उद्दिश्यप्रविभक्त गति का स्वरूप हुआ।
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