Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सत्तरहवाँ लेश्या पद-प्रथम उद्देशक - पांचवां द्वार
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अशुभ लेश्या द्रव्यों के बहुत थोड़े भाग की ही निर्जरा कर पाते हैं उनके बहुत से अशुभ लेश्या द्रव्य शेष बने रहते हैं इसलिए वे अविशुद्धतर लेश्या वाले होते हैं।
पांचवांद्वार णेरइया णं भंते! सव्वे समवेयणा? . गोयमा! णो इणढे समढे। से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ-'णेरइया णो सव्वे समवेयणा?'
गोयमा! णेरइया दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - सण्णिभूया य असण्णिभूया य। तत्थ णं जे ते सण्णिभूया ते णं महावेयण तरागा, तत्थ णं जे ते असण्णिभूया ते णं अप्पवेयणतरागा, से तेणद्वेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-'णेरइया णो सव्वे समवेयणा' ॥५॥ ॥ ४७८॥
कठिन शब्दार्थ - संण्णिभूया - संज्ञीभूत, असण्णिभूया - असंज्ञीभूत, महावेयण तरागा - महान् वेदना वाले, अप्पवेयण तरागा - अल्प वेदना वाले। . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सभी नैरयिक क्या समान वेदना वाले होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
प्रश्न - हे भगवन्! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि सभी नैरयिक समवेदना वाले नहीं होते? - उत्तर - हे गौतम! नैरयिक दो प्रकार के कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं - संज्ञीभूत (जो पूर्वभव में संज्ञी पंचेन्द्रिय थे) और असंज्ञीभूत (जो पूर्वभव में असंज्ञी थे।) उनमें जो संज्ञीभूत होते हैं, वे अपेक्षाकृत महान् वेदना वाले होते हैं और उनमें जो असंज्ञीभूत होते हैं, वे अल्पतर वेदना वाले होते हैं। इस कारण हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि सभी नैरयिक समवेदना वाले नहीं होते हैं।
विवेचन - जो नैरयिक पूर्व भव में संज्ञी पंचेन्द्रिय थे और फिर नरक में उत्पन्न हुए हैं वे संज्ञी भूत नैरयिक कहलाते हैं तथा जो नैरयिक भूतकाल में असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय थे और फिर नरक में उत्पन्न हुए हैं वे असंज्ञीभूत नैरयिक कहलाते हैं। संज्ञीभूत नैरयिक अपेक्षाकृत महावेदना वाले होते हैं क्योंकि भूतकाल में उन्होंने तीव्र अशुभ अध्यवसाय के कारण तीव्र अशुभ कर्मों का बन्ध किया है और महानारकों में उत्पन्न हुए हैं, इससे विपरीत जो नैरयिक असंज्ञीभूत हैं वे अल्पतर वेदना वाले होते हैं। असंज्ञी जीव नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देवगति में से किसी भी गति का बन्ध कर सकते हैं अतः वे नरकायु का बंध करके नरक में उत्पन्न होते हैं किन्तु अति तीव्र अध्यवसाय न होने से रत्नप्रभा पृथ्वी के
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