Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१७२
प्रज्ञापना सूत्र
उत्तर - हे गौतम! सबसे कम तेजो लेश्या वाले एकेन्द्रिय हैं, उनसे अनन्त गुणा अधिक कापोत लेश्या वाले एकेन्द्रिय हैं, उनसे नील लेश्या वाले विशेषाधिक हैं और उनसे भी कृष्ण लेश्या वाले विशेषाधिक हैं।
विवेचन - सबसे थोड़े तेजो लेश्या वाले एकेन्द्रिय हैं, क्योंकि कितनेक बादर पृथ्वी पानी और वनस्पतिकायिकों के अपर्याप्तावस्था में तेजोलेश्या होती है। उनसे कापीत लेश्या वाले अनन्त गुणा हैं क्योंकि अनंत सूक्ष्म और बादर निगोद जीवों को कापोत लेश्या होती है। उनसे भी नील लेश्या वाले विशेषाधिक हैं। उनसे भी कृष्ण लेश्या वाले पूर्वोक्त युक्ति के अनुसार विशेषाधिक हैं।
एएसणं भंते! पुढवीकाइयाणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
गोमा ! जहा ओहिया एगिंदिया, णवरं काउलेस्सा असंखिज्ज गुणा ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! कृष्ण लेश्या से लेकर तेजो लेश्या तक के पृथ्वीकायिकों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार समुच्चय एकेन्द्रियों का कथन किया है, उसी प्रकार पृथ्वीकायिकों .. के अल्पबहुत्व का कथन करना चाहिए। विशेषता इतनी है कि कापोत लेश्या वाले पृथ्वीकायिक असंख्यात गुणा हैं।
एवं आउकाइयाणवि ।
भावार्थ - इसी प्रकार कृष्णादि लेश्या वाले अप्कायिकों में अल्पबहुत्व का निरूपण भी समझ लेना चाहिए ।
एएसि णं भंते! ते काइयाणं कण्हलेस्साणं णीललेस्साणं काउलेस्साण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा ते काइया काउलेस्सा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया ।
-
भावार्थ- प्रश्न हे भगवन्! इन कृष्ण लेश्या वाले, नील लेश्या वाले और कापोत लेश्या वाले तेजस्कायिकों में कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
उत्तर - हे गौतम! सबसे कम कापोत लेश्या वाले तेजस्कायिक हैं, उनसे नील लेश्या वाले तेजस्कायिक विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्ण लेश्या वाले तेजस्कायिक विशेषाधिक हैं।
एवं वाकाइयाणवि ।
भावार्थ - इसी प्रकार कृष्णादि लेश्या वाले वायुकायिकों का भी अल्पबहुत्व समझ लेना चाहिए।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org