Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अप्रत्याख्यान क्रिया और ५. मिथ्यादर्शनप्रत्यया । इसी कारण हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि सभी पृथ्वीकायिक समान क्रियाओं वाले होते हैं।
एवं जाव चरिंदिया |
भावार्थ- पृथ्वीकायिकों के समान ही अप्कायिकों, तेजस्कायिकों, वायुकायिकों, वनस्पतिकायिकों, बेइन्द्रियों, तेइन्द्रियों और चउरिन्द्रियों की समान वेदना और समान क्रिया कहनी चाहिए।
विवेचन पांच स्थावर और तीन विकलेन्द्रिय भी नैरयिकों की तरह कह देना चाहिए। वेदना. की अपेक्षा सरीखी वेदना वाले हैं असंज्ञी भूत हैं और अव्यक्त वेदना वेदते हैं। क्रिया की अपेक्षा सभी मिथ्यादृष्टि है इसलिए नियमपूर्वक पांच क्रिया वाले होते हैं।
यद्यपि तीन विकलेन्द्रियों में दूसरा गुणस्थान भी होने से उनमें सास्वादन समकित पायी जाती है। तथापि वह समकित भी विराधना का कारण होने से एवं उसमें मिथ्यात्व अभिमुख परिणाम होने से तीन विकलेन्द्रियों में पहले एवं दूसरे दोनों गुणस्थानों में मिथ्यादर्शन प्रत्यया क्रिया मानी गयी है।
पंचेंदिय तिरिक्ख जोणिया जहा णेरड्या, णवरं किरियाहिं सम्मद्दिट्ठी मिच्छहिट्टी सम्मामिच्छद्दिट्ठी । तत्थ णं जे ते सम्मद्दिट्ठी ते दुविहा पण्णत्ता । तंजहा असंजया य संजयाजया । तत्थ णं जे ते संजयासंजया तेसि णं तिण्णि किरियाओ कज्जंति, तंजहा- आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया । तत्थ णं जे ते असंजया तेसि णं चत्तारि किरियाओ कज्जंति, तंजहा- आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाण किरिया । तत्थ णं जे ते मिच्छा हिट्ठी जे य सम्मामिच्छद्दिट्ठी तेसि णं णियइयाओ पंच किरियाओ कज्जंति, तंजहा- आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाण किरिया, मिच्छादंसणवत्तिया, सेसं तं चेव ॥ ४८२ ॥
भावार्थ - पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों का आहारादि विषयक कथन नैरयिक जीवों के आहारादि विषयक कथन के अनुसार समझना चाहिए। विशेषता यह कि क्रियाओं में नैरयिकों से कुछ विशेषता है। पंचेन्द्रियतिर्यंच तीन प्रकार के हैं, यथा सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि । उनमें जो सम्यग्दृष्टि हैं, वे दो प्रकार के हैं - असंयत और संयतासंयत । जो संयतासंयत हैं, उनको तीन क्रियाएँ लगती हैं, वे इस प्रकार हैं - आरम्भिकी, पारिग्रहिकी और मायाप्रत्यया । जो असंयत होते हैं, उनको चार क्रियाएँ लगती हैं। वे इस प्रकार हैं - १. आरम्भिकी २. पारिग्रहिकी ३. मायाप्रत्यया और ४. अप्रत्याख्यानक्रिया। इन तीनों में से जो मिथ्यादृष्टि हैं और जो सम्यग् - मिथ्यादृष्टि हैं, उनको निश्चित रूप से पांच क्रियाएँ लगती हैं, वे इस प्रकार हैं १. आरम्भिकी २. पारिग्रहिकी ३. मायाप्रत्यया ४. अप्रत्याख्यानक्रिया और ५. मिथ्यादर्शनप्रत्यया। शेष सारा वर्णन नैरयिकों के समान समझ लेना चाहिये ।
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