Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सत्तरहवाँ लेश्या पद- प्रथम उद्देशक - मनुष्य में सप्त द्वारों की प्ररूपणा
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में तिर्यंच पंचेन्द्रियों का आहार आदि विषयक कथन किया गया है जो नैरयिकों की तरह कहना चाहिए किन्तु क्रिया की अपेक्षा तिर्यंच पंचेन्द्रिय के तीन भेद हैं - सम्यग्दृष्टि,. मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि। सम्यग् दृष्टि तिर्यंच पंचेन्द्रिय के दो भेद - संयतासंयत और असंयत । संयतासंयत के तीन क्रियाएं होती हैं आरंभिकी, पारिग्रहिकी और माया प्रत्यया । असंयत के मिथ्यादर्शन प्रत्यया के सिवाय चार क्रियाएं होती हैं। मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि तिर्यंच पंचेन्द्रिय के पांचों क्रियाएं होती हैं ।
सास्वादन गुणस्थान वाले सम्यग्दृष्टि तिर्यंच पंचेन्द्रिय में भी पांचों क्रिया समझना चाहिए। कारण विकलेन्द्रिय के समान समझना चाहिए। भगवती सूत्र शतक ३० में सास्वादन समकित में क्रियावादी समवसरण नहीं माना है। क्रियावादी समवसरण वाले जीवों को ही मुख्य रूप से सम्यग्दृष्टि माना गया है। उनमें मिथ्यादर्शन प्रत्यया क्रिया नहीं होती है।
मनुष्य में सप्त द्वारों की प्ररूपणा
मस्सा णं भंते!- सव्वे समाहारा ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे ।
सेकेणjo ?
गोमा ! मस्सा दुविहा पण्णत्ता । तंजहा - महासरीरा य अप्पसरीरा य । तत्थ णं जे ते महासरीरा ते णं बहुतराए पोग्गले आहारेंति जाव बहुतराए पोग्गले णीससंति, आहच्च आहारेंति, जाव आहच्च णीससंति । तत्थ णं जे ते अप्पसरीरा ते णं अप्पतराए पोग्गले आहारेंति जाव अप्पतराए पोग्गले णीससंति, अभिक्खणं आहारेंति जाव अभिक्खणं णीससंति, से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ - ' मणुस्सा सव्वे णो समाहारा ।' सेसं जहा णेरइयाणं, णवरं किरियाहिं मणूसा तिविहा पण्णत्ता । तंजहा सम्महिट्ठी, मिच्छदिट्ठी, सम्मामिच्छद्दिट्ठी । तत्थ णं जे ते सम्मद्दिट्ठी ते तिविहा पण्णत्ता। तंजहासंजया, असंजया, संजयासंजया । तत्थ णं जे ते संजया ते दुविहा पण्णत्ता । तंजहा सरांगसंजया य वीयरागसंजया य । तत्थ णं जे ते वीयरागसंजया ते णं अकिरिया, तत्थ
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जे ते सरागसंजया ते दुविहा पण्णत्ता । तंजहा - पमत्तसंजया य अपमत्तसंजया य । तत्थ णं जे ते अपमत्तसंजया तेसिं एगा मायावत्तिया किरिया कंज्जइ । तत्थ णं जे ते पमत्तसंजया तेसिं दो किरियाओ कज्जंति - आरंभिया मायावत्तिया य । तत्थ णं जे ते
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