Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१६४
प्रज्ञापना सूत्र
वालों का आहारादि विषयक कथन भी इसी प्रकार का होता है, किन्तु उन्हीं जीवों में कहना चाहिए, जिनमें वह होती है तथा जिस प्रकार विशेषण रहित औधिकों का गम (अभिलाप-पाठ) कहा है, उसी प्रकार पद्मलेश्या-शुक्ल लेश्या वाले जीवों का आहारादि विषयक सब कथन करना चाहिए। इतना विशेष है कि पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या पंचेन्द्रिय तिर्यंचों, मनुष्यों और वैमानिकों में ही होती है, शेष जीवों में नहीं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में कृष्ण आदि लेश्याओं से युक्त नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक में आहार आदि सात द्वारों के विषय में प्ररूपणा की गई है। पद्मलेश्या और शुक्ल लेश्याओं वाले जीवों के आहार आदि का वर्णन तेजोलेश्या के समान समझना चाहिये। विशेषता यह है कि जिन जीवों में ये दोनों लेश्याएं पाई जाती हैं उन्हीं के विषय में कथन करना चाहिये। ये दोनों लेश्याएं तिर्यंच पंचेन्द्रियों, मनुष्यों और वैमानिक देवों में ही पाई जाती है, शेष जीवों में नहीं।
॥पण्णवणाए भगवईए सत्तरसमे लेस्सापए पढमो उद्देसओ समत्तो॥ ॥प्रज्ञापना भगवती सूत्र के सतरहवें लेश्या पद का प्रथम उद्देसक समाप्त॥
For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org