Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सत्तरहवाँ लेश्या पद- प्रथम उद्देशक भवनवासी देवों में सात द्वार की प्ररूपणा
सेकेणट्टेणं भंते! एवं वुच्चइ० ?
गोयमा! असुरकुमारा दुविहा पण्णत्ता । तंजहा- पुव्वोववण्णगा य पच्छोववण्णगा य। तत्थं णं जे ते पुव्वोववण्णगा ते णं महाकम्मतरा, तत्थ णं जे ते पच्छोववण्णगा ते णं अप्पकम्मतरा, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ - 'असुरकुमारा णो सव्वे समकम्मा ।' भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! क्या सभी असुरकुमार समान कर्म वाले होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
प्रश्न- हे भगवन्! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि सभी असुरकुमार समान कर्म वाले नहीं होते हैं ?
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उत्तर - हे गौतम! असुरकुमार दो प्रकार के कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं पूर्वोपपन्नक और पश्चादुपपन्नक। उनमें जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे महाकर्म वाले होते हैं। उनमें जो पश्चादुपपन्नक होते हैं, वे अल्पतरकर्म वाले होते हैं। इसी कारण हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि सभी असुरकुमार समान कर्म वाले नहीं होते हैं ।
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एवं वण्णलेस्साए पुच्छा ।
तत्थ णं जे ते पुव्वोववण्णगा ते णं अविसुद्धवण्णतरांगा, तत्थ णं जे ते पच्छोववण्णगा ते णं विसुद्धवण्णतरागा, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ- 'असुरकुमारा णं सव्वे णो समवण्णा ।'
भावार्थ - इसी प्रकार वर्ण और लेश्या के लिए प्रश्न कहना चाहिए। भगवन्! असुरकुमार क्या सभी समान वर्ण और समान लेश्या वाले होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! पूर्वोक्त दो प्रकार के असुरकुमारों में जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे अविशुद्धतर वर्ण वाले हैं तथा उनमें जो पश्चादुपपन्नक हैं, वे विशुद्धतर वर्ण वाले हैं। इस कारण हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि सभी असुरकुमार स्वमान वर्ण वाले नहीं होते हैं ।
एवं लेस्साए वि ।
भावार्थ - इसी प्रकार लेश्या के विषय में कहना चाहिए।
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वेयणाए जहा णेरड्या ।
भावार्थ - असुरकुमारों की क्रिया एवं आयु के विषय में शेष सब निरूपण नैरयिकों की क्रिया एवं आयुविषयक निरूपण के समान समझना चाहिए ।
अवसेसं जहा णेरइयाणं ।
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