Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सोलहवां प्रयोग पद - गति प्रपात के भेद-प्रभेद
१३९
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! वह नौका गति क्या है?
उत्तर - हे गौतम! जैसे नौका पूर्व वैताली (तट) से दक्षिण तट की ओर जलमार्ग से जाती है, अथवा दक्षिण तट से अपर (पश्चिम) तट की ओर जलपथ से जाती है, ऐसी गति नौका गति है। यह नौका गति का स्वरूप हुआ।
से किं तं णय गई?
णय गई जण्णं णेगम-संगह ववहार-उज्जुसुय सह-समभिरूढ एवंभूयाणं णयाणं जा गई अहवा सव्वणया वि जं इच्छंति, से तं णय गई ८।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! नय गति का क्या स्वरूप है ?
उत्तर - हे गौतम! नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवम्भूत इन सात नयों . की जो प्रवृत्ति है अथवा सभी नय जो मानते हैं, वह नय गति है। यह नय गति का स्वरूप हुआ।
से किं तं छाया गई?
छाया गई जंणं हयछायं वा गयछायं वा णरछायं वा किण्णरछायं वा महोरगच्छायं वा गंधव्वच्छायं वा उसहछायं वा रहछायं वा छत्तछायं वा उवसंपजित्ताणं गच्छइ, से तं छायागई ९। ... भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! छाया गति किसे कहते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! अश्व की छाया, हाथी की छाया, मनुष्य की छाया, किन्नर की छाया, महोरग की छाया, गन्धर्व की छाया, वृषभछाया, रथछाया, छत्रछाया का आश्रय करके या छाया का आश्रय लेने
के लिए जो गमन होता है, वह छाया गति कहलाती है। यह छाया गति का वर्णन है। .. विवेचन - किण्णर, महोरग और गंधर्व ये तीनों व्यन्तर जाति के देवों के नाम हैं।
यहाँ पर छाया शब्द से "आश्रय करना" यह अर्थ लेना चाहिए। जैसे कि अश्व, हाथी आदि का आश्रय लेकर चलना छाया गति कहलाती है। "
से किं तं छायाणुवाय गई? ____ छायाणुवाय गई जे णं पुरिसं छाया अणुगच्छइ, णो पुरिसे छायं अणुगच्छइ, से तं छायाणुवायगई १०॥ ... भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! छायानुपात गति किसे कहते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! छाया पुरुष आदि (अपने निमित्त) का अनुगमन करती है, किन्तु पुरुष छाया का अनुगमन नहीं करता, वह छायानुपात गति है। यह छायानुपात गति का स्वरूप हुआ।
विवेचन - छायानुपात गति में छाया का चालक पुरुष होने से छाया उसका अनुगमन करती है। जैसे पुरुष चल रहा हो छाया उसके आगे या पीछे होने पर भी पुरुष छाया का अनुगामी नहीं कहलाता
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