Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सत्तरहवाँ लेश्या पद-प्रथम उद्देशक - सप्त द्वार
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सप्तद्वार आहार समसरीरा उस्सासे कम्म वण्ण लेसासु। समवेयण समकिरिया समाउया चेव बोद्धव्या॥१॥
भावार्थ - १. समाहार, सम-शरीर और सम उच्छ्वास, २. कर्म ३. वर्ण ४. लेश्या ५. समवेदना ६. समक्रिया तथा ७. समायुष्क इस प्रकार सात द्वार प्रथम उद्देशक में जानने चाहिए।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में लेश्या संबंधी सात द्वारों की गाथा कही गई है। इस गाथा में 'सम' शब्द का प्रयोग एक ही बार किया गया है किन्तु उसका संबंध प्रत्येक पद के साथ जोड़ लेना चाहिए तदनुसार सात द्वार इस प्रकार हैं - १. सम आहार, सम शरीर और सम उच्छ्वास २. सम कर्म ३. सम वर्ण ४. सम लेश्या ५. सम वेदना ६. सम क्रिया और ७. सम आयुष्क।
नैरयिक आदि में सप्त द्वार
. प्रथम द्वार णेरइया णं भंते! सव्वे समाहारा, सव्वे समसरीरा, सव्वे समुस्सास णिसासा? गोयमा! णो इणढे समढे।
से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-'णेरइया णो सव्वे समाहारा जाव णो सब्वे समुस्सास णिस्सासा'?
गोयमा! णेरइया दुविहा पण्णत्ता। तंजहा-महासरीरा य अप्पसरीरा य। तत्थ णं जे ते महासरीरा ते णं बहुतराए पोग्गले आहारेंति, बहुतराए पोग्गले परिणामेंति, बहुतराए पोग्गले उस्ससंति, बहुतराए पोग्गले णीससंति, अभिक्खणं आहारेंति, अभिक्खणं परिणामेंति, अभिक्खणं ऊससंति, अभिक्खणं णीससंति। तत्थ णं जे ते अप्यसरीरा ते णं अप्पतराए पोग्गले आहारेंति, अप्पतराए पोग्गले परिणामेंति, अप्पतराए पोग्गले ऊससंति, अप्पतराए पोग्गले णीससंति, आहच्च आहारेंति, आहच्च परिणामेंति, आहच्च ऊससंति, आहच्च णीससंति, से एएणद्वेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-'णेरइया णो सव्वे समाहारा, णो सव्वे समसरीरा, णो सव्वे समुस्सास णिस्सासा'॥ ४७५॥
कठिन शब्दार्थ - समाहारा - समान आहार वाले, समुस्सास णिस्सासा - समान श्वासोच्छ्वास वाले, महासरीरा - महाशरीर वाले, अप्पसरीरा - अल्प शरीर वाले, बहुतराए - बहुत अधिक, अभिक्खणं - बार-बार, आहच्च - कदाचित्।
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