Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१४२
प्रज्ञापना सूत्र
बंधण विमोयण मई जण्णं अंबाण वा अंबाडगाण वा माउलुंगाण वा बिल्लाण वा कविट्ठाण वा भच्चाण वा फणसाण वा दालिमाण वा पारेवयाण वा अक्खोलाण व चाराण वा बोराण वा तिंदुयाण वा पक्काणं परियागयाणं बंधणाओ विष्पमुक्काणं णिव्वाघाएणं अहे वीससाए गई पवत्तई, से तं बंधण विमोयण गई १७।से तं विहाय गई ५ (से तं गइप्यवाए) ॥ ४७४॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वह बन्धन विमोचन गति क्या है ?
उत्तर - हे गौतम! अत्यन्त पक कर तैयार हुए अतएव बन्धन से छूटे हुए आम्रों, आम्रातकों, बिजौरों, बिल्वफलों (बेल के फलों) कवीठों, भद्र नामक फलों, कटहलों (पनसों), दाडिमों, पारेवत नामक फलविशेषों, अखरोटों, चोर फलों (चारों) बोरों अथवा तिन्दुकफलों की. रुकावटव्याघात न हो तो स्वभाव से ही जो अधोगति होती है, वह बन्धन विमोचन गति कहलाती है। यह बन्धन विमोचन गति का स्वरूप हुआ। इसके साथ ही विहायोगगति का प्ररूपणा पूर्ण हुई। यह गतिप्रपात का वर्णन हुआ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में विहाय गति के १७ भेदों की प्ररूपणा की गयी है। विहायस् अर्थात् आकाश में गति होना विहाय गति कहलाती है। विहाय गति सतरह प्रकार की कही गयी है जो इस प्रकार है -
१. स्पृशद् गति - परमाणु पुद्गल, द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी यावत् अनन्त प्रदेशी स्कन्ध परमाणु पुद्गल, द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी यावत् अनन्त प्रदेशी स्कन्ध को स्पर्श करते हुए जाते हैं, उसे स्पृशद् गति कहते हैं।
२. अस्पृशद् गति - परमाणु पुद्गल आदि परमाणु पुद्गल आदि से परस्पर स्पर्श किये बिना जाते हैं उसे अस्पृशद् गति कहते हैं।
यद्यपि परमाणु आदि द्रव्यों की एक दूसरे से स्पर्श करके ही गति होती है तथापि यहाँ पर स्पर्शद् गति में जो द्रव्य मार्ग में कुछ रुक करके फिर गति करते हैं उन्हें ही ग्रहण किया गया है। जो द्रव्य मार्ग में अन्य द्रव्यों का स्पर्श करते हुए भी रुकते नहीं हैं उन्हें अस्पर्शद् गति में ग्रहण किये गये हैं।
३. उपसंपद्यमान गति - राजा, युवराज, ईश्वर, तलवर, माडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य, सेठ, सेनापति, सार्थवाह आदि का आश्रय लेकर उनके इच्छानुसार गति करना उपसंपद्यमान गति कहलाती है।
४. अनुपसंपद्यमान गति - उपरोक्त राजा युवराज आदि का सहारा लिये बिना अपनी इच्छा से गति करना अनुपसंपद्यमान गति कहलाती है।
५. पुद्गल गति - परमाणु पुद्गल यावत् अनन्त प्रदेशी स्कंध की गति को पुद्गल गति कहते हैं। ६. मंडूक गति - मेंढक की तरह फुदक-फुदक कर चलना मंडूक गति कहलाती है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org