Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
सोलहवां प्रयोग पद - गति प्रपात के भेद-प्रभेद
१३३
होती है, जम्बूद्वीप नामक द्वीप में महाहिमवन्त और रुक्मी नामक वर्षधर पर्वतों में सब दिशाओंविदिशाओं में सिद्ध क्षेत्रोपपात गति होती है, जम्बूद्वीप नामक द्वीप में हरिवर्ष और रम्यकवर्ष में सब दिशाओं विदिशाओं में सिद्ध क्षेत्रोपपात गति होती है, जम्बूद्वीप नामक द्वीप में गन्धावती माल्यवन्तपर्याय वृत्तवैताढ्यपर्वत में समस्त दिशाओं-विदिशाओं में सिद्ध क्षेत्रोपपात गति होती है, जम्बूद्वीप नामक द्वीप में निषध और नीलवन्त नामक वर्षधर पर्वत में सब दिशाओं और विदिशाओं में सिद्ध क्षेत्रोपपात गति होती है, जम्बूद्वीप नामक द्वीप में पूर्व विदेह और अपर विदेह में सब दिशाओं और विदिशाओं में सिद्ध क्षेत्रोपपात गति होती है, जम्बूद्वीप नामक द्वीप में देवकुरु और उत्तरकुरु क्षेत्र में सब दिशाओं-विदिशाओं में सिद्ध क्षेत्रोपपात गति होती है तथा जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर (मेरु) पर्वत की सब दिशाओं और विदिशाओं में सिद्ध क्षेत्रोपपात गति होती है। लवण समुद्र में सब दिशाओं और विदिशाओं में सिद्ध क्षेत्रोपपात गति होती है, धातकीखण्डद्वीप में पूर्वार्द्ध और पश्चिमार्द्ध मन्दर पर्वत की सब दिशाओं विदिशाओं में सिद्ध क्षेत्रोपपात गति होती है, कालोद समुद्र में समस्त दिशाओं-विदिशाओं में सिद्ध क्षेत्रोपपात गति होती है, पुष्करवरद्वीपार्द्ध में पूर्वार्द्ध के भरत और ऐरवत वर्ष में सब दिशाओं और विदिशाओं में सिद्ध क्षेत्रोपपात गति होती है, पुष्करवर द्वीपार्द्ध के पश्चिमार्द्ध मंन्दरपर्वत में सब दिशाओं-विदिशाओं में सिद्ध क्षेत्रोपपात गति होती है। ... यह सिद्ध क्षेत्रोपपात गति का वर्णन हुआ। इस प्रकार क्षेत्रोपपात गति का निरूपण पूर्ण हुआ।
विवेचन - क्षेत्र उपपात गति के मूल उत्तर भेद मिला कर ८० भेद होते हैं। क्षेत्र उपपात गति के मूल भेद पांच होते हैं-नरक क्षेत्र उपपात गति, तिर्यंच योनि क्षेत्र उपपात गति, मनुष्य क्षेत्र उपपात गति, देव क्षेत्र उपपात गति, सिद्ध क्षेत्र उपपात गति। .. नरक क्षेत्र उपपात गति के सात भेद .. रत्नप्रभा पृथ्वी नरक क्षेत्र उपपात गति यावत् तमस्तमः प्रभा पृथ्वी नरक क्षेत्र उपपात गति। तिर्यंच योनिक क्षेत्र उपपात गति के पांच भेद इस प्रकार हैंएकेन्द्रिय तिर्यंच योनिक क्षेत्र उपपात गति यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक क्षेत्र उपपात गति। मनुष्य क्षेत्र उपपात गति के दो भेद-सम्मूछिम मनुष्य क्षेत्र उपपात गति, गर्भज मनुष्य क्षेत्र उपपात गति। देव क्षेत्र उपपात गति के चार भेद-भवनपति देव क्षेत्र उपपात गति यावत् वैमानिक देव क्षेत्र उपपात गति। सिद्ध क्षेत्र उपपात गति के ५७ भेद-जम्बूद्वीप के ११-१ भरत ऐरवत क्षेत्र, २. चुल्ल हिमवन्त शिखरी वर्षधर पर्वत ३. हेमवत हैरण्यवत क्षेत्र ४. शब्दापाती विकटापाती वृत्त वैताढ्य पर्वत ५. महा हिमवन्त रुक्मी वर्षधर पर्वत ६. हरिवर्ष रम्यक वर्ष क्षेत्र ७. गन्धापाती माल्यवन्त ८. निषध नीलवंत वर्षधर पर्वत ९ पूर्व विदेह पश्चिम विदेह १०. देवकुरु उत्तरकुरु, ११. मेरु पर्वत के ऊपर चारों दिशा विदिशा में सिद्ध क्षेत्र उपपात गति होती है। इसी तरह धातकी खंड के २२ बोल पुष्करार्ध के २२ बोल, और ५६ वाँ लवण समुद्र ५७ वाँ कालोदधि समुद्र के ऊपर चारों दिशा एवं विदिशा में सिद्ध क्षेत्र उपपात गति होती है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org