Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सोलहवां प्रयोग पद - गति प्रपात के भेद-प्रभेद
उत्तर - हे गौतम! जो पुद्गल परमाणु लोक के पूर्वी चरमान्त अर्थात् छोर से पश्चिमी चरमान्त तक एक ही समय में चला जाता है, अथवा पश्चिमी चरमान्त से पूर्वी चरमान्त तक एक समय में गमन करता है, अथवा दक्षिणी चरमान्त से उत्तरी चरमान्त तक एक समय में गति करता है या उत्तरी चरमान्त से दक्षिणी चरमान्त तक तथा ऊपरी चरमान्त छोर से नीचले चरमान्त तक एवं नीचले चरमान्त से ऊपरी चरमान्त तक एक समय में ही गति करता है, यह पुद्गल नोभवोपपात गति कहलाती है। यह पुद्गल नोभवोपपात गति का निरूपण हुआ।
से किं तं सिद्ध णोभवोववाय गई? .
सिद्ध णोभवोववाय गई दुविहा पण्णत्ता। तंजहा-अणंतर सिद्ध णोभवोववाय गई य परंपर सिद्ध णोभवोववाय गई य?
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! वह सिद्ध-नोभवोपपात गति कितने प्रकार की कही गयी है? . . उत्तर - हे गौतम! सिद्ध-नोभवोपपात गति दो प्रकार की कही गयी है, वह इस प्रकार हैं-अनन्तर सिद्ध नोभवोपपात गति और परम्परसिद्ध नोभवोपपात गति।
से किं तं अणंतर सिद्ध णोभवोववाय गई?
अणंतर सिद्ध णोभवोववाय गई पण्णरसविहा पण्णत्ता। तंजहा - तित्थसिद्ध अणंतर सिद्ध णोभवोववाय गई य जाव अणेगसिद्ध णोभवोववाय गई य।
भावार्थ-प्रश्न - हे भगवन्! वह अनन्तरसिद्ध-नोभवोपपात गति कितने प्रकार की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! अनन्तरसिद्ध-नोभवोपपात गति पन्द्रह प्रकार की है। वह इस प्रकार है - तीर्थसिद्ध-अनन्तरसिद्ध-नोभवोपपातगति से लेकर यावत् अनेकसिद्ध-अनन्तरसिद्ध-नोभवोपपात गति। यह अनन्तरसिद्ध-नोभवोपपात गति का निरूपण हुआ।
से किं तं परंपर सिद्ध णोभवोववाय गई?
परंपर सिद्ध णोभवोववाय गई अणेगविहा पण्णत्ता। तंजहा - अपढम समय सिद्ध णोभवोववाय गई एवं दुसमय सिद्ध णोभवोववाय गई जाव अणंत समय सिद्ध णोभवोववाय गई, से तं सिद्ध णोभवोववाय गई, से तं णोभवोववायगई, से तं उववाय गई ४॥४७२॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! परम्परसिद्ध-नोभवोपपात गति कितने प्रकार की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! परम्परसिद्ध-नोभवोपपात गति अनेक प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार हैं- अप्रथम समय सिद्ध-नोभवोपपात गति एवं द्विसमय सिद्ध-नोभवोपपात गति यावत् त्रिसमय से लेकर संख्यात समय, असंख्यातसमय सिद्ध अनन्तसमय सिद्ध-नोभवोपपात गति। यह परम्पर
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