Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सोलहवां प्रयोग पद - समुच्चय जीव और चौबीस दण्डकों में प्रयोग .
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समूह है, इसलिए काय है। इसमें होने वाले व्यापार को औदारिक शरीर काय प्रयोग कहते हैं। यह प्रयोग पर्याप्त तिर्यंच और मनुष्यों के ही होता है। . . १०. औदारिक मिश्र शरीर काय प्रयोग - वैक्रिय, आहारक और कार्मण के साथ मिले हुए औदारिक को औदारिक मिश्र कहते हैं। औदारिक मिश्र के व्यापार को औदारिक मिश्र शरीर काय प्रयोग कहते हैं।
११. वैक्रिय शरीर काय प्रयोग - वैक्रिय शरीर पर्याप्ति के कारण पर्याप्त जीवों के होने वाला वैक्रिय शरीर का व्यापार वैक्रिय शरीर काय प्रयोग है।
१२. वैक्रिय मिश्र शरीर काय प्रयोग - देव और नैरयिक जीवों के अपर्याप्त अवस्था में होने वाला काय प्रयोग वैक्रिय मिश्र शरीर काय प्रयोग है। यहाँ वैक्रिय और कार्मण की अपेक्षा मिश्र प्रयोग
होता है।
१३. आहारक शरीर काय प्रयोग - आहारक शरीर पर्याप्ति के द्वारा पर्याप्त जीवों को आहारक शरीर काय प्रयोग होता है।
१४. आहारक मिश्र शरीर काय प्रयोग - जिस समय चौदह पूर्वधारी मुनिराज आहारक लब्धि के द्वारा प्राणी दया आदि प्रयोजनों से आहारक शरीर का निर्माण करते हैं। वह शरीर जब तक पूर्ण रूप से नहीं बनाया जाता है, तब तक अर्थात् आहारक शरीर बनाने के प्रारम्भ समय से लेकर पूर्ण बनने के पूर्व तक की अवस्था को आहारक मिश्र शरीर काय प्रयोग कहा जाता है। . १५. कार्मण शरीर प्रयोग - विग्रह गति में तथा सयोगी केवली को केवली समुद्घात के तीसरे, चौथे और पांचवें समय में तैजस कार्मण शरीर प्रयोग होता है। तैजस शरीर और कार्मण शरीर स्दा एक साथ रहते हैं, इसलिए उन के सम्मिलित व्यापार रूप काय प्रयोग को भी एक ही माना है।
: समुच्चय जीव और चौबीस दण्डकों में प्रयोग जीवाणे भंते। काविहे पओगे पण्णते?
गोपमा। पण्णरसविहे पओगे पण्णते। जहा - सच मणप्पभोगे जाव कम्मासरीर कायप्पओगे।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीवों के कितने प्रकार के प्रयोग कहे गये हैं ?
उत्तर - हे गौतम ! जीवों के पन्द्रह प्रकार के प्रयोग कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं - सत्य-मनः . प्रयोग से लेकर कार्मण शरीर काय-प्रयोग तक।
णेरइयाणं भंते! कइविहे पओगे पण्णत्ते?
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