Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
देवों के विषय में समझ लेना चाहिए। इनमें भी ये ११ प्रयोग ही पाये जाते हैं। वायुकाय को छोड़ कर पृथ्वीकाय आदि एकेन्द्रियों में तीन तीन प्रयोग होते हैं - १. औदारिक २. औदारिक मिश्र और ३. कार्मण। वायुकायिकों में पांच प्रयोग होते हैं क्योंकि उनमें वैक्रिय और वैक्रिय मिश्र भी संभव है। बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चउरिन्द्रियों में चार-चार प्रयोग होते हैं - १. औदारिक २. औदारिक मिश्र ३. कार्मण और ४. असत्यामृषा भाषा। शेष सत्य आदि भाषा उनमें नहीं होती है क्योंकि 'विगलेसु असच्चमोसेव'- विकलेन्द्रियों में एक असत्यामृषा भाषा होती है-ऐसा शास्त्र का वचन है। पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों में तेरह प्रयोग होते हैं क्योंकि उनको चौदह पूर्वो का ज्ञान असंभव होने से आहारक और आहारक मिश्र प्रयोग नहीं होते। मनुष्यों में पन्द्रह ही प्रयोग पाये जाते हैं।
समुच्चय जीवों में विभाग से प्रयोग प्ररूपणा जीवाणं भंते! किं सच्च मणप्पओगी जाव किं कम्मासरीर कायप्पओगी?...
गोयमा! जीवा सव्वे वि ताव होज्जा सच्च मणप्पओगी वि जाव वेउव्वियमीस सरीर कायप्पओगी वि कम्मासरीर कायप्पओगी वि १३। अहवेगे य आहारग सरीर कायप्पओगी य १, अहवेगे य आहारग सरीर कायप्पओगिणो य २, अहवेगे य आहारग मीससरीर कायप्पओगी य ३, अहवेगे य आहारग मीससरीर कायप्पओगिणो य ४ चउभंगो। अहवेगे य आहारग सरीर कायप्पओगी य आहारग मीससरीर कायप्पओगी य १, अहवेगे य आहारग सरीर कायप्पओगी य आहारग मीसासरीर कायप्पओगिणो य २, अहवेगे य आहारग सरीर कायप्पओगिणो य आहारग मीसासरीर कायप्पओगी य ३, अहवेगे य आहारग सरीर कापप्पओगिणो य आहारग मीसासरीर कायप्पओगिणो य ४, एए जीवाणं अहभंगा १॥४॥२॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीव सत्यमनःप्रयोगी होते हैं अथवा पावत् कार्मण शरीर कात्रप्रयोगी होते है।
उत्तर - है गौतम ! १. जीव सभी सत्यमनःप्रयोगी भी होते हैं, यावत् मृषामनःप्रयोगी, सत्वमृषामनः प्रयोगी, असत्यामृषामनःप्रयोगी आदि तथा वैक्रिय मिश्र शरीर काय प्रयोगी भी एवं कार्मण शरीर काय प्रयोगी भी इस प्रकार तेरह पदों के वाच्य होते हैं, १. अथवा एक आहारक शरीर काय-प्रयोगी होता है २. अथवा बहुत-से आहारक शरीर काय प्रयोगी होते हैं ३. अथवा एक आहारक मिश्र शरीर काय प्रयोगी होता है ४. अथवा बहुत-से जीव आहारक मिश्र शरीर काय प्रयोगी होते हैं। ये चार भंग हुए। तेरह पदों वाले प्रथम भंग की इनके साथ गणना की जाए तो पांच भंग हो जाते हैं। द्विकसंयोगी
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